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________________ मैं कौन हूं। अब मैं किससे पडूं। कौन देगा इसका उत्तर? और देश के इस भूभाग में तो मैं एक अजनबी हूं। आप बता दें कि आपने क्या कर दिया है? बुद्ध ने अपनी आंखें खोलीं और उन्होंने कहा : मैंने कुछ भी नहीं किया है। मैंने करना छोड़ दिया है। हो सकता है कि इसके कारण से, हो सकता है कि बस मेरे निकट होने से हो गया हो.. .तुम चिंता मत करो। तुम तेजी से मुझको छोड़ कर यहां से भाग जाओ। उस व्यक्ति ने कहा : इससे पहले कि मैं यहां से चला जाऊं, एक बात मुझे पूछनी है, क्या आप भगवान हैं ? वह एक विद्वान ब्राह्मण था, उसने सुन रखा था, उसने अपनी प्रतिदिन की पूजा-अर्चना में प्रतिदिन वेदों का पाठ किया था। उसने कृष्ण और राम के बारे में सुन रखा था, लेकिन ये सभी मात्र कहानियां थीं। पहली बार कोई व्यक्ति उसको दिखाई पड़ा था यथार्थ, असली, पार्थिव और फिर भी दिव्य : क्या आप भगवान हैं? बुद्ध ने कहा : नहीं। उस व्यक्ति ने कहा : क्या आप कोई संत, कोई अर्हत हैं ?-क्योंकि वह व्यक्ति कुछ-कुछ समझ गया। भारत में जैन लोग भगवान में विश्वास नहीं रखते, इसलिए जब कोई पूर्ण, परम सत्य को उपलब्ध कर लेता है, उसे अर्हत कहा जाता है; वह जो पहुंच गया है; संत, ऋषि। इसलिए पहले उसने पूछा, क्या आप भगवान हैं? उसने हिंदुओं की भाषावली में प्रश्न पूछा था और बुद्ध ने कहा, नहीं। तब उसने सोचा, हो सकता कि वे भारत की दूसरी परंपरा, श्रमणों की परंपरा से जो भगवान में विश्वास नहीं रखते संबंध रखते हों। उसने पूछा, क्या आप अर्हत, एक ऋषि, एक संत हैं? और बुद्ध ने कह दिया, नहीं। तब वह दिग्भ्रमित हो गया, क्योंकि केवल दो ही भाषाएं संभव थीं। फिर उसने पूछा, तब आप कौन हैं? बुद्ध ने कहा : मैं सजग हूं। यह बात व्याकरण के अनुसार सही नहीं है, लेकिन सत्य है। उन्होंने कहा : मैं सजग हूं। उन्होंने बस उस क्षण में अपने अस्तित्व के गुणधर्म के बारे में बताया- 'सजगता', न भगवान, न संत। क्योंकि जब तुम कहते हो ' भगवान' तो ऐसा प्रतीत होता है जैसे कि कुछ रुका हुआ है। जब तुम कहते हो 'संत' ऐसा लगता है कि कुछ पूर्ण, स्थायी है, वस्तु बन गया है। बुद्ध ने कहा : मैं सजग हूं। या और अधिक उत्तम अनुवाद. उन्होंने कहा, मैं सजगता हूं-कोई तादात्म्य नहीं है, बस सजग रहने की एक गतिमान ऊर्जा है। सजगता में, ऐसी सजगता में कोई प्रेरणा नहीं होती; और यदि वहां कोई प्रेरणा हो तो वहा कोई सजगता नहीं है। मैं तुमसे एक कहानी कहता हूं एक बहुत सुंदर कहानी। इसे जितना संभव हो सके उतनी गहराई से सुनो।
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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