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________________ वह नहीं जानती कि बच्चा क्या कर रहा है. जरा बाहर जाकर देखो कि बच्चा क्या कर रहा है और उसको मना कर दो। चाहे वह जो कुछ भी क रहा हो, यह बात नहीं है, बल्कि रोक देना, नहीं यही है असली बात। इनकार करना आसानी से आता है, यह अहंकार को बढ़ा देता है। अहंकार का पोषण न पर होता है, मन का पोषण संदेह, शक, अश्रद्धा से होता है। तुम मन के द्वारा मुझ पर श्रद्धा नहीं कर सकते। तुमको मन का द्वैतवाद - सतत दुविधा, मन के भीतर लगातार चलता रहने वाला विवाद देख लेना पड़ेगा। मन का एक भाग लगातार विपक्ष की भांति कार्य कर रहा है। मन कभी किसी निर्णय पर नहीं पहुंचता। मन में सदैव कुछ ऐसे भाग हैं जो असहमत होते हैं। वे अपने अवसर की प्रतीक्षा करते हैं, और वे तुमको हताश कर देंगे। तब श्रद्धा क्या है? तुम श्रद्धा कैसे कर सकते हो? तुम्हें मन को समझना पड़ेगा। मन को और इसके भीतर के सतत दोहरेपन को समझ कर, इसके साक्षी बन कर तुम मन से भिन्न हो जाते हो। और उस भिन्नता में श्रद्धा का उदय होता है और वह श्रद्धा तुम्हारे और मेरे मध्य कोई विभाजन नहीं जानती। वह श्रद्धा तुम्हारे और जीवन के मध्य कोई विभाजन नहीं जानती। यह श्रद्धा बस श्रद्धा है। यह किसी के प्रति श्रद्धा नहीं है, किसी को संबोधित श्रद्धा नहीं है- क्योंकि यदि तुम मुझ पर श्रद्धा करते हो तो तुंरत ही तुम किसी पर अश्रद्धा करोगे। जब कभी भी तुम किसी पर श्रद्धा करते हो, तुरंत ही दूसरे छोर पर तुम किसी और पर अश्रद्धा कर रहे होओगे। यदि तुम्हारा भरोसा कुरान में है, तो तुम बुद्ध में विश्वास नहीं कर सकते। यदि तुमको जीसस में श्रद्धा है, तो तुम बुद्ध में श्रद्धा नहीं रख सकते। किस प्रकार की श्रद्धा है यह? इसका जरा भी मूल्य नहीं है। श्रद्धा किसी के प्रति नहीं होती। यह न तो जीसस के प्रति है, न बुद्ध के प्रति यह बस श्रद्धा है। तुम बस श्रद्धा करते हो क्योंकि तुमको श्रद्धा रखना अच्छा लगता है। तुम तो श्रद्धा रखते हो और श्रद्धा रखने का तम मजा लेते कि जब तम धोखा खाते तब भी तम मजा लेते हो। तुम मजा लेते हो कि तुम तब भी श्रद्धा कर सकते हो जब कि धोखा खाने की पूरी संभावना है, कि धोखा तुम्हारी श्रद्धा को नष्ट नहीं कर सकता, कि तुम्हारी श्रद्धा इतनी विराटतर है कि धोखा देने वाला तुमको विचलित नहीं कर सका। हो सकता है कि उसने तुम्हारा धन ले लिया हो, उसने तुम्हारी प्रतिष्ठा छीन ली हो, उसने तुमको पूरी तरह से लूट लिया हो, लेकिन तुम मजा लोगे और तुम आत्यंतिक रूप से हर्षित और आनंदित अनुभव करोगे कि वह तुम्हारी श्रद्धा को खंडित न कर सका, अब भी तुम उस पर श्रद्धा रखते हो। और यदि वह पुन: लूटने आता है तो तुम तैयार हो तुम अभी भी उस पर श्रद्धा करते हो। इसलिए उस व्यक्ति ने जिसने तुमको धोखा दिया है, तुमको भौतिक रूप से लूट लिया है, लेकिन आध्यात्मिक रूप से उसने तुमको समृद्ध कर दिया है। लेकिन आमतौर पर क्या होता है? एक व्यक्ति तुम्हारे साथ धोखा करता है और सारी मानवकी निंदा होती है। एक ईसाई तुमको धोखा देता है और सभी ईसाइयों की निंदा होती है। एक मुसलमान ने तुम्हारे साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया था और मुसलमानों का पूरा समुदाय पापी हो
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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