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________________ पतंजलि कहते हैं इस संसार के विरोध में मत होओ। बल्कि संसार के माध्यम से खोज करो। एक उपाय खोज लो ताकि तुम प्रकाश के मूलस्रोत, शुद्ध, अस्पर्शित प्रकाश को उपलब्ध कर सको।' ऐसे लोग हैं जो केवल भोजन के लिए जीते हैं, और ऐसे लोग हैं जो भोजन के विरोध में चले जाते हैं- दोनों ही गलत हैं। जीसस कहते हैं : मनुष्य केवल रोटी के सहारे नहीं जी सकता, सच है, पूरी तरह से सच है - लेकिन क्या मनुष्य रोटी के बिना जी सकता है? इसको याद रखना चाहिए। मनुष्य केवल रोटी से जीवित नहीं रह सकता, ठीक; लेकिन मनुष्य रोटी के बिना भी नहीं जी सकता। मैं एक छोटी सी कहानी पढ़ रहा था। पालतू पक्षियों की दुकान से एक महिला ने इस आश्वासन पर एक तोता खरीदा कि वह बात करेगा। दो सप्ताह बाद वह शिकायत करने के लिए दुकान पर आई उसके खेलने के लिए एक छोटी सी घंटी खरीद लीजिए, दुकानदार ने सलाह दी। इससे उसको बोलने में अक्सर सहायता मिलती है। उस महिला ने घंटी खरीद ली और चली गई एक सप्ताह बाद वह यह कहने के लिए आई कि पक्षी ने अभी तक एक भी शब्द नहीं बोला है। दुकानदार ने राय दी कि वह एक दर्पण खरीद ले, जो कि पक्षियों को बोलने के लिए उकसाने का अचूक उपाय है। उसने दर्पण ले लिया और चली गई। केवल तीन दिन बाद ही वह वापस लौट आई। इस बार दुकानदार ने उसे एक छोटी सी प्लास्टिक की चिड़िया बेच दी, जिसके बारे में उसने बताया कि यह तोते को कुछ बातचीत करने के लिए अवसर देगी। एक सप्ताह और बीत गया और महिला यह बताने के लिए आई कि तोता अब मर गया है। क्या वह बिना बोले ही मर गया. ? दुकानदार ने पूछा। अरे नहीं, उस महिला ने उत्तर दिया। उसने मरने के ठीक पहले एक बात कही थी। क्या कहा था? खाना! भगवान के लिए मुझको खाना दे दो! व्यक्ति को बहुत बहुत ही सजग होना पड़ता है, वरना व्यक्ति बहुत सरलता से विपरीत ध्रुवीयता पर जा सकता है। मन अतिवादी है। मैंने वह निरीक्षण किया है वे लोग जो केवल भोजन के लिए जीते : रहे हैं, जब वे अपनी जीवनशैली से ऊब जाते हैं तो उपवास आरंभ कर देते हैं। तुरंत ही वे दूसरी अति पर चले जाते हैं। मैं कभी भी किसी ऐसे उपवास करने वाले के, जो उपवास को लेकर दीवाना हो, संपर्क नहीं आया हूं जो इसके पहले भोजन के प्रति अति आसक्त न रहा हो। वे वही लोग हैं। वे लोग जो काम - भोग में बहुत अधिक संलग्न हैं ब्रह्मचारी होना आरंभ कर देते हैं। वे लोग जो अति कंजूस हैं प्रत्येक पदार्थ का त्याग करना आरंभ कर देते हैं। इसी भांति मन एक अति से दूसरी अति में चला जाता है।
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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