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________________ तुम अपनी निद्रा की अवस्था के माध्यम से सुनते हो, तुम अपने स्वयं के ढंग से इसक्तई व्याख्या कर लोगे। इसलिए यदि तुम वास्तव में मुझे सुनना चाहते हो, तो व्याख्या मत करो। अभी उस रात को ही, एक नये आए हुए युवक ने संन्यास लिया, मैंने उससे कहा, कुछ दिन के लिए यहां रहो। उसने कहा लेकिन मैं तो दो या तीन दिन में जा रहा हूं। मैंने कहा लेकिन यह ठीक नहीं हत कछ किया जाना शेष है, और तम तो बस अभी आए हो। अभी तो तम्हारा मझसे संपर्क भी नहीं हो पाया है। इसलिए कम से कम आगामी ध्यान शिविर तक तो रुको अ दिन और ठहरो। वह बोला, मैं इसके बारे में विचार करूंगा। तब मैंने उससे कहा फिर तो विचार करने की कोई आवश्यकता नहीं है, तुम चले जाओ। क्योंकि तुम जो कुछ भी सोचोगे वह गलत ही होने वाला है। और संन्यास की पूरी बात यही है कि तुम मेरी बात को, इसके बारे में सोचे-विचारे बिना सुनना आरंभ कर दो। सारी बात यही है कि मैं तुमसे जो कुछ भी कहूं वह तुम्हारे लिए तुम्हारे स्वयं के मन से अधिक महत्वपूर्ण बन जाए। संन्यास का सारा अभिप्राय यही है। अब यदि, जो मैं कहता हूं और तुम्हारे मन के बीच कोई संघर्ष हो तो तुम अपने मन को छोड़ दोगे और तुम मुझको सुन लोगे। यही तो खतरा है। यदि तुम लगातार यह निश्चित करने के लिए कि जो मैं कह रहा हूं उसे किया जाना है या नहीं, अपने मन का उपयोग किए चले जाते हो, तो तुम जैसे तुम थे वैसे ही बने रहते हो। तुम बाहर नहीं निकलते। तुम अपना हाथ मेरे निकट नहीं लाते, ताकि मैं उसे थाम सकू। आमतौर से सभी कुछ तुम्हारे साथ घट रहा है, तुमने कुछ भी नहीं किया है। 'मुझे ऐसा अनुभव होता है जैसे कि आपके पास आने में मेरा कोई चुनाव नहीं था।' बिलकुल सच है यह बात। तुम किसी तरह से भटकते हुए आ गए हो। कोई मित्र मेरे पास आ रहा था और उसने तुमसे साथ चलने के लिए कह दिया, या तुम बस किसी पुस्तकों की दुकान में गए थे और वहा तुमको मेरी कोई पुस्तक मिल गई। एक संन्यासी आया और मैंने उससे पूछा, तुम मुझसे मिलने किस प्रकार से आए? पहली बार मुझमें तुम्हारी रुचि कैसे जाग्रत हुई? उसने कहा मैं गोआ में समुद्र तट पर बैठा हुआ था, और बस रेत में मुझे संन्यास पत्रिका पड़ी हुई दिखाई दी, कोई व्यक्ति उसे वहां छोड़ गया था। अब करने को कुछ था भी नहीं सो मैंने उसे पढ़ना शुरू कर दिया। इस प्रकार से मैं यहां पर आ गया। आकस्मिक ढंग से तुम मेरे पास आकस्मिक ढंग से आ गए हो, लेकिन अब मेरे साथ सजगतापूर्वक रहने का, मेरे साथ परे होश से रहने का यह एक अवसर है। यह शभ है कि तम आकस्मिक रूप से मेरे पास आ गए हो लेकिन यहां पर आकस्मिक ढंग से मत रहो। अब इस आकस्मिकपन को छोड़ दो। अब अपनी जागरूकता का स्वामी बनना आरंभ करो। अन्यथा फिर कोई और पुन: तुम्हें आकस्मिक ढंग से कहीं और ले जाएगा।
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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