SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 377
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ठीक है, पूरी तरह से तो नहीं, पादरी ने कहा, मैंने दस आशाओं पर बोलना आरंभ कर दिया था लेकिन जब मैंने पढ़ा तुमको वेश्यागमन नहीं करना चाहिए, तब मुझे याद आ गया कि मैं अपनी साइकिल कहां छोड़ आया था। एक दूसरी कहानी एक प्रतिष्ठित व्यवसायी चिकित्सक के पास गया, डाक्टर साहब, उसने कहा मुझको आपसे अपने पुत्र के बारे में बात करनी है। मुझे विश्वास है कि उसको खसरा हो गया है। आजकल इस बीमारी का प्रकोप बहुत अधिक है, डाक्टर ने कहा लगता है कोई भी परिवार इससे बच नहीं पा रहा है। लेकिन डाक्टर साहब, उसने कहना जारी रखा, मेरा लड़का कहता है कि उसे यह बीमारी नौकरानी का चुंबन लेने से लगी है और आपको सच्ची बात बता दूं मुझको भय है कि मुझको इसी बीमारी का खतरा है । और बुरी बात तो यह है कि प्रत्येक रात्रि को मैं अपनी पत्नी का चुंबन लिया करता हूं इसलिए उसे भी बीमारी हो जाने का खतरा है। ओह मेरे भगवान! डाक्टर ने कहा. मुझे क्षमा करें महोदय, मुझे तुंरत जाना है और अपने गले की जांच करवानी है। समझ गए? प्रत्येक व्यक्ति अचेतनता के एक वर्तुल में घूम रहा है, और लोग अपनी बीमारियों, रोगों, अपनी बेहोशियों का लेन-देन कर रहे हैं, एक-दूसरे के साथ केवल अपनी अचेतनता बांट रहे हैं। आमतौर से तुम इस भांति जीते हो जैसे कि तुम सोए हो। जब तुम सोए हु हो तब तुम निर्णय नहीं ले सकते कैसे निर्णय लोगे तुमर बुद्ध के पास एक व्यक्ति आया और उसने कहा, 'मैं मानवता की सेवा करना चाहता हूं।' अवश्य ही वह बहुत लोकोपकारी व्यक्ति रहा होगा। बुद्ध ने उसकी ओर देखा, और कहा जाता है कि बुद्ध की आंखों से आंसू छलक पड़े। यह विचित्र बात थी । बुद्ध रो रहे हैं। - किसलिए? उस व्यक्ति को बहु बेचैनी अनुभव हुई। उसने कहा : आप किसलिए रो रहे हैं? क्या मैंने कुछ गलत कह दिया है? बुद्ध ने कहा नहीं, कुछ गलत नहीं कहा। लेकिन तुम मानवता की सेवा किस प्रकार कर सकते हो? – अभी तो तुम हो ही नहीं। मुझको दिखाई पड़ रहा है कि तुम गहन निद्रा में हो मैं तुम्हारे खर्राटे भी सुन सकता हूं। यही कारण है कि मैं रो रहा हूं। और तुम मानवता की सेवा करना चाहते हो? पहली बात है, जागरूक, सजग हो जाना। पहली बात है, होना ।
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy