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________________ उदाहरण के लिए, संस्कृत में दो, व है, यह ट्वा बन गया, और तब टू। तीन संस्कृत में त्रि है, यह थ्री बन गया। छह संस्कृत का षष्ठ है, यह सिक्स बन गया। सात संस्कृत में सप्त है, यह सेवेन बन गया। आठ संस्कृत का अष्ट है, यह एट बन गया। नौ संस्कृत का नव है, यह नाइन बन गया। मूलभूत खोज भारतीय है, किंतु फिर यह वहीं ठहर गई। चीन में उन्होंने पहली बार, करीब-करीब पांच हजार वर्ष पूरब ही बारूद का विकास कर लिया था, लेकिन उन्होंने इससे कभी कोई बम नहीं बनाए। उन्होंने केवल आतिशबाजियां बनाईं। उन्होंने इसका आनंद उठाया, उन्होंने इसको प्रेम किया, वे इसके साथ खेले, लेकिन उनके लिए यह एक खिलौना ही था। उन्होंने इसके द्वारा कभी किसी की हत्या नहीं की। वे इसके साथ बहुत दूर तक नहीं गए। पूरब ने अनेक आधारभूत वस्तुएं खोज लीं, लेकिन वह इनके भीतर गहरा नहीं उतरा। यह वस्तुओं के भीतर गहराई तक जा भी नहीं सकता, क्योंकि पूरब का सारा प्रयास भीतर जाने का है। विज्ञान पाश्चात्य प्रयास है, धर्म पूर्वीय प्रयास है,। पश्चिम में धर्म तक वैज्ञानिक होने का प्रयास करता है, यही तो है जो स्कोल्फ स्टीनर कर रहा था; धार्मिक ढंग को और-और वैज्ञानिक बनाने का प्रयास, क्योंकि पश्चिम में विज्ञान ही मूल्यवान है। यदि तुम सिद्ध कर सको कि धर्म भी वैज्ञानिक है, तब धर्म भी एक दूसरे रास्ते से, अप्रत्यक्ष रूप से मूल्यवान हो जाता है। इसलिए पश्चिम में प्रत्येक धार्मिक व्यक्ति यह सिद्ध करने का प्रयास करता रहता है कि विज्ञान ही एकमात्र वितान नहीं है, धर्म भी एक विज्ञान है। पूरब में हमने इसकी जरा भी चिंता नहीं ली है। बल्कि यहां तो दूसरे ढंग का प्रयास किया गया है, यदि कोई वैज्ञानिक खोज हुई तो जिन लोगों ने इसे खोजा उनको यह सिद्ध करना पड़ा कि इसका कोई धार्मिक महत्व है। अन्यथा यह अर्थहीन था। 'उसका कहना है कि ऐसा करके और ध्यान करके हम अपने अहंकार को खोने और अपने 'मैं को पाने में समर्थ हो जाते हैं।' रूडोल्फ स्टीनर को नहीं शांत है कि ध्यान क्या है, और जिसको वह ध्यान कहता है वह एकाग्रता है। वह पूर्णत: संशयग्रस्त है : वह एकाग्रता को ध्यान कहता है। एकाग्रता ध्यान नहीं है। एकाग्रता तो वैज्ञानिक विचारणा के लिए एक अत्यधिक उपयोगी माध्यम है। यह मन को एकाग्र करना, मन को संकुचित करना, मन को किसी विशेष वस्तु पर केंद्रित करना है। किंतु मन रहता है, और संकेंद्रित हो जाता है, और -समग्र हो जाता है। ध्यान किसी पर एकाग्रता करना नहीं है। वास्तव में यह विश्रांत हो जाना है, संकुचित होना नहीं है। एकाग्रता में एक लक्ष्य होता है। ध्यान में कोई भी लक्ष्य नहीं होता जिस पर हमें ध्यान लगाना है। तुम बस एक लक्ष्य-मुक्त चैतन्य में, चेतना के विस्तार में खो जाते हो। एकाग्रता में किसी एक पर ही सारा अवधान रहता है और दूसरी सभी वस्तुओं से सरोकार नहीं रहता। यह केवल एक वस्तु को अपने अवधान में सम्मिलित करती है, यह प्रत्येक अन्य वस्तु को बहिष्कृत कर देती है।
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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