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________________ इस भांति रह पाना। और गुरजिएफ अत्यधिक कठोरता से काम लिया करता था। यदि वह किसी को किसी अन्य व्यक्ति की ओर मुस्कुराते हुए देख लेता तो उसे तुरंत निकाल देता, क्योंकि उसने संवाद कर लिया था, मौन तोड़ दिया गया था। उसने कहा था. इस मकान में इस भांति रहो जैसे कि तुम अकेले हो। यहां पर उनतीस अन्य व्यक्ति हैं, किंतु तुम्हारा उनसे कोई सरोकार नहीं है-जैसे कि वे नहीं हैं। जब तीन माह का समय पुरा हआ, तो मात्र तीन व्यक्ति बचे; सत्ताइस लोग छोड़ कर जा थे। आस्पेंस्की उन तीन व्यक्तियों में से एक था। वे तीन लोग इतने मौन हो गए कि गुरजिएफ उनको बंगले से बाहर नगर में ले गया, उनको बाजार में घुमाया, और आस्पेंस्की अपनी डायरी में लिखता है, पहली बार मैं देख सका कि सारी मानव-जाति निद्रा में चल रही है। लोग अपनी निद्रा में बातचीत कर रहे हैं। दुकानदार सामान बेच रहे हैं, ग्राहक सामान खरीद रहे हैं, बड़ी भीड़ें इधर-उधर जा रही हैं, और उस क्षण में मैं देख सका कि प्रत्येक व्यक्ति गहरी निद्रा में है, कोई भी सजग नहीं है। उसने कहा, उस विक्षिप्त स्थान में हमें इतना असहज लगा कि हमने गुरजिएफ से हम लोगों को बंगले में वापस ले चलने के लिए कहा। किंतु वह बोला, वह बंगला तुमको मनुष्यता की असलियत दिखाने के लिए मात्र एक प्रयोग था, तुम भी इसी प्रकार से जीते रहे हो। क्योंकि अब तुम मौन हो और तम देख सकते हो कि लोग बस बेहोश, अचेतन हैं, वास्तव में जी नहीं रहे हैं, बस बिना जाने क्यों, बिना जाने किसलिए, चलते चले जा रहे हैं। स्वयं का निरीक्षण करो, इस पर ध्यान करो, और देखो क्या तुम निद्रा में जी रहे हो? यदि तुम निद्रा में जी रहे हो, तो इससे बाहर निकलो। ध्यान और कुछ नहीं बल्कि उस जरा सी चेतना को जो तुम्हारे पास है, एक साथ एकत्रित करने का प्रयास है, इसे एक साथ एकत्रित कर लेना, इसको संकेंद्रित करना, इसको और और बढ़ाने, और अचेतनता को घटाने के लिए हर प्रकार के उपाय करने का प्रयास है। धीरे-धीरे चेतना ऊंची और ऊंची होती जाती है, कम से कम स्वप्न चलते हैं, तुमको कम से कम विचार आते हैं, और मौन के अधिक और अधिक अंतराल आते हैं। इन अंतरालों के माध्यम से दिव्यता के झरोखे खुल जाएंगे। एक दिन जब तुम वास्तव में समर्थ हो चुके होते हो और तुम यह कह सको कि मैं कुछ मिनट तक बिना किसी विचार या स्वप्न द्वारा मुझको विचलित किए बिना रह सकता हूं तो पहली बार तुम जानोगे। उद्देश्य पूरा हो गया है। गहन निद्रा से तुम गहन जागरूकता में आ चुके हो। जब गहन निद्रा और गहन जागरूकता का मिलन होता है, तो वर्तुल पूरा हो जाता है। यही है समाधि। पतंजलि इसको कैवल्य, शुद्ध चेतना, एकांत कहते हैं; इतनी शुद्ध, इतनी एकाकी कि और किसी का अस्तित्व रहता ही नहीं। सिर्फ इस एकाकीपन में ही व्यक्ति आनंदित हो जाता है। केवल इस एकांत में ही व्यक्ति जान लेता है कि सत्य क्या है। सत्य तुम्हारा होना है। यह वहीं है लेकिन तुम सोए हुए हो। जागो।
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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