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________________ देख रहे हो। परितृप्ति केवल ठीक दिशा से ही संभव है। जीवन तुम्हें हताश करता है क्योंकि जीवन एक परम आशीष है। यदि तुम बाहर से संतुष्ट हो गए तो तुम सदा के लिए भटक जाओगे; फिर तुम कभी भीतर नहीं देखोगे। किंतु इन सभी हताशाओ के बावजूद तुम आशा लगाए चले जाते हो। मैंने एक व्यक्ति के बारे में सुना है, तुमने अपनी पिछली नौकरी क्यों छोड़ दी? मेरे बीस ने कहा कि मैं नौकरी से निकाल दिया गया हूं लेकिन मैंने इस बात पर कोई ध्यान नहीं दिया। वे तो ऐसा सदा कहते रहते थे। इसलिए अगले दिन मैं आफिस चला गया और देखा कि मेरा सारा सामान आफिस से हटा दिया गया। फिर मैं अगले दिन गया, तो मेरी नाम पट्टिका दरवाजे से हट चुकी थी, और अगले दिन मैंने अपनी कुर्सी पर किसी और को बैठे देखा। यह बहुत अधिक है! मैनें अपने आप से कहा, इसलिए मैंने त्यागपत्र दे दिया। किंतु तुम्हारे लिए यह भी बहुत अधिक नहीं है। प्रत्येक दिन तुमको इनकार किया जाता है, प्रत्येक दिन तुमको निकाला जाता है, हर दिन; हर पल तुम हताश होते हो। जो भी व्यवस्थाएं तुम बनाते हो हर क्षण नष्ट कर दी जाती हैं, तुम्हारा उद्देश्य चाहे जो भी हो, रह हो जाता है। तुम्हारी सभी आशाएं बस निराशाए सिद्ध होती हैं, तुम्हारे सभी स्वप्न मिट्टी हो जाते हैं और मुंह में बहुत कडुवा स्वाद छोड़ जाते हैं। तुमको लगातार मितली अनुभव होती है, किंतु फिर भी तुम चिपकते चले जाते हो, शायद किसी दिन, कहीं से हो सकता कि तुम्हारे स्वप्न पूरे हो जाएं। तुम अपने प्रक्षेपणों के काल्पनिक संसार में इसी भांति झूलते रहते हो। जब तक कि तुम सजग न हो जाओ और अपनी आशाओं की निराशाओं को न देखो, जब तक तुम सभी आशाओं को न छोड़ दो, तुम भीतर नहीं मुडोगे, और तुम कारण को नष्ट कर पाने में सक्षम नहीं हो पाओगे। 'अतीत और भविष्य का अस्तित्व वर्तमान में है, किंतु वर्तमान में उनकी अनुभूति नहीं हो पाती है, क्योंकि वे विभिन्न तलों पर होते हैं।' योग का विश्वास शाश्वतता में है, समय में नहीं। योग कहता है : सभी सदा हैं-अतीत अब भा ह वर्तमान में छिपा है और भविष्य भी यहीं है वर्तमान में छिपा हुआ, क्योंकि अतीत बस मिट नहीं सकता और भविष्य ना-कुछ पन से बस प्रकट नहीं हो सकता। भूत, वर्तमान, भविष्य, तीनों अभी और यहीं हैं। हमारे लिए वे विभाजित हैं, क्योंकि हम समग्रता को नहीं देख सकते हैं। यथार्थ को देखने के लिए हमारी ज्ञानेंद्रियों, हमारी आंखों की क्षमताएं बहुत सीमित हैं। हम विभाजित करते हैं। यदि हमारी चेतना शुद्ध है और इसमें कोई भी बादल नहीं है, तब हम शाश्वतता को जैसी यह है वैसी ही देख लेंगे। वहां कोई अतीत नहीं होगा और वहां कोई भविष्य नहीं होगा। वहां केवल यही क्षण होगा शाश्वत रूप से यही क्षण। एक महान झेन सदगुरु बोकोजू मर रहा था, और उसके शिष्य एकत्रित हो गए। मुख्य शिष्य ने पूछा, प्यारे सदगुरु आप हमें छोड़ कर जा रहे हैं, जब आप विदा हो चुकेंगे तो लोग हमसे पूछेगे कि आपका
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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