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________________ पहल सूत्र-- 'प्रभाव के कारण पर अवलंबित होने से, कारणों के मिटते ही प्रभाव तिरोहित हो जाते हैं। अविद्या, अपने स्वयं के अस्तित्व का अज्ञान, इस संसार का आधारभूत कारण है। एक बार अविद्या, अपने स्वयं के अस्तित्व का अज्ञान मिट जाए, यह, संसार भी विलीन हो जाता है-वस्तुओं का संसार नहीं. बल्कि इच्छाओं का संसार, वह संसार नहीं जो तुम्हारे बाहर है, बल्कि वह संसार जिसे तुम भीतर से सतत आरोपित करते रहे हो। जिस क्षण तुम्हारे भीतर से अज्ञान मिटता है उसी क्षण तुम्हारे स्वप्नों, भ्रमों, प्रक्षेपणों का संसार तिरोहित हो जाता है। इसे समझ लेना चाहिए, बस ज्ञान का अभाव अजान नहीं है, इसलिए तुम ज्ञान का संकलन करते रह सकते हो, किंतु इस ढंग से अज्ञान नहीं मिटेगा। तुम बहुत ज्ञानवान हो सकते हो, किंतु फिर भी तुम अज्ञानी बने रहोगे। वास्तव में जानकारी अज्ञान के लिए सुरक्षा का कार्य करती है। अज्ञान को जानकारी से नष्ट नहीं किया जा सकता। बल्कि इसके विपरीत इस अज्ञान की इस जानकारी से रक्षा होती है। जानकारी एकत्रित करने की, जानकारी संचित करने की इच्छा अपने स्वयं के अज्ञान को छिपाने के सिवाय और कुछ भी नहीं है। जितना अधिक तुम जानते हो उतना ही अधिक तुम सोचते हो कि तुम अब अज्ञानी नहीं रहे। तिब्बत में एक कहावत है : 'जो अज्ञानी हैं वे सौभाग्यशाली हैं, क्योंकि वे यह सोच कर प्रसन्न हैं कि वे सब कुछ जानते हैं।' प्रत्येक बात को जान लेने के प्रयास से कोई सहायता नहीं मिलने जा रही है, यह सारे मामले से चूक जाना है। अपने स्व को जान लेने का प्रयास पर्याप्त है। यदि तुम अपने स्वयं के अस्तित्व को जान सको तो तुमने सभी कुछ जान लिया है, क्योंकि अब तुम समग्र के साथ भागीदारी करते हो, तुम्हारा स्वभाव समग्र का स्वभाव है। तुम पानी की एक बूंद के समान हो। यदि तुम पानी की एक बूंद को जान लो तो तुमने अतीत, वर्तमान और भविष्य के सभी महासागरों को जान लिया है। पानी की एक बूंद में ही सागर का पूरा स्वभाव उपस्थित है। वह व्यक्ति जो जानकारी के पीछे पड़ जाता है, लगातार स्वयं को भूलता रहता है और सूचनाओं का संचय करता चला जाता है। संभवत: वह बहुत अधिक जानता है, लेकिन फिर भी वह अज्ञानी बना रहेगा। इसलिए अज्ञान जानकारी का विरोधी नहीं है, अज्ञान को जानकारी से नहीं मिटाया जा सकता है। तब अज्ञान को मिटाने का क्या उपाय है? योग कहता है : सजगता, न कि जानकारी, जानना नहीं, स्वयं को बाहर केंद्रित नहीं करना बल्कि ज्ञान के अंतस्रोत पर केंद्रित कर देना।
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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