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________________ प्रश्न: इसे मा प्रेम माधुरी ने पूछा है: मैं स्वयं को बहुधा उन घड़ियालों में से एक पाती हूं, जिनका आप उल्लेख करते है। आरे निश्चित ही स्वामी बोधि महान दार्शनिक होने का प्रत्येक लक्षण प्रदर्शित करता है। यह सुंदर है, लेकिन कपटी घड़ियाल की चेतना के बारे में कुछ कहेंगे ? माने लंबे समय से पीडा झेली है क्योंकि स्त्रैण मन ने लंबे समय तक दुख उठाया है। स्त्री का लंबे समय तक दमन हुआ है क्योंकि स्त्रैण चित्त को दीर्घकाल से दमित किया गया है। दमन, शोषण, उत्पीड़न की शताब्दियों पर शताब्दिया व्यतीत हो गई हैं, स्त्री के प्रति बहत हिंसा की गई है। स्वभावत: वह चालाक हो गई है। स्वभावत: वह पुरुषों को सताने के सूक्ष्म उपायों का आविष्कार करने में अति चतुर हो गई है। यह स्वाभाविक है। दुर्बल का यही का है। छिद्रान्वेषण, दोष खोजना, बकवास करना-कमजोर का यही उपाय है। जब तक कि तुम इसे न समझ लो, तुम इसको छोड़ नहीं पाओगी। स्त्रियां क्यों लगातार पुरुषों की कमियां खोजती रहती हैं, क्यों उनको सताने के लिए लगातार उपाय और विधियां तलाशती रहती हैं? यह उनके अवचेतन में है। यह शताब्दियों का दमन है जिसने उनके अस्तित्व को विषाक्त कर दिया है, और निःसंदेह वे सीधा आक्रमण नहीं कर सकतीं। अनेक कारणों से यह संभव नहीं है। एक, वे पुरुष से अधिक कोमल हैं। वे कराटे, अकीदो, खे सीख सकती हैं, लेकिन इससे कोई विशेष अतर नहीं पड़ेगा। वे कोमल हैं, यही उनका सौंदर्य है। यदि वे बहत अधिक कराटे और ज-जित्स और अकीदो सीख लेती हैं और वे बहत बलिष्ठ और शक्तिशाली हो जाती हैं, तो वे कुछ खो देंगी, और उनको मिलेगा कुछ नहीं। वे अपनी स्त्रैणता खो देंगी, वे अपनी फूल जैसी कोमलता, नजाकत खो देंगी। यह प्रयास मूल्यवान नहीं है। स्त्री कोमल है। उसे वैसा ही होना है। उसमें पुरुष से अधिक गहरी लयबद्धता है। वह पुरुष से अधिक संगीतमय, अधिक लयपूर्ण, अधिक गोलाई लिए हुए है। एक बात, अपनी कोमलता के कारण वह उतनी आक्रामक नहीं हो सकती है। एक और बात, पुरुष उसको एक निश्चित ढंग से प्रशिक्षित करता रहा है; पुरुष उसको एक निश्चित ढंग का मन देता रहा है, जो उसको उसके बंधनों से बाहर निकलने की अनुमति नहीं देता। यह इतने लंबे समय से चलता रहा है कि यह उसकी गहराइयों तक पहुंच गया
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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