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________________ जब आप बुद्धिमत्ता, अंतदृष्टियों और संबोधि के बारे में बात करते है तो बहुधा 'पूरब में हम' कहते है। कृपया इस वाक्यांश का अभिप्राय समझाए। परब का पूरब से कोई संबंध नहीं है। पूरब तो बस अंतराकाश, चेतना के भीतरी संसार का प्रतीक है। पूरब धर्म का प्रतीक धर्म का प्रतीक है, पश्चिम विज्ञान का प्रतीक है। इसलिए पूरब में भी यदि कोई व्यक्ति वैज्ञानिक दृष्टिकोण उपलब्ध कर लेता है, तो वह पश्चिमी हो जाता है। हो सकता है कि वह पूरब में ही रहे, हो सकता है उसका जन्म पूरब में ही हुआ हो-इससे कोई अंतर नहीं पड़ता है। या जब कभी कोई धार्मिक चेतना को उपलब्ध करता है हो सकता है कि उसका जन्म पश्चिम में हआ हो, इससे कोई अंतर नहीं पड़ता है-वह पूरब का भाग होने लगता है। जीसस, फ्रांसिस, इकहार्ट, बोहेमे, विटगिस्टीन, यहां तक कि हेनरी थोरो, इमरसन, स्वीडनबर्ग-वे सभी पूर्वीय हैं। सदा स्मरण रखो, पूरब प्रतीकात्मक है। मेरा भूगोल से कोई लेना-देना नहीं है। इसलिए जब कभी मैं कहता हूं 'पूरब में हम' तो मेरा अभिप्राय होता है, वे सभी लोग जिन्होंने भीतर के सत्य को जान लिया है। और जब कभी मैं कहता हूं 'पश्चिम में तुम' तो मेरा अभिप्राय बस यही होता है-वैज्ञानिक मन, तकनीकी मन, अरस्तुवादी मन; तार्किक, गणितीय वैज्ञानिक, जो भाव-उन्मुख नहीं है; विषय उन्मुख है लेकिन विषयी उन्मुख नहीं है। एक बार तुम इसको समझ लो, तब कोई समस्या न रहेगी। सभी महान धर्मों का जन्म पूरब में हुआ है। पश्चिम ने अभी तक कोई महान धर्म पैदा नहीं किया है। ईसाईयत, यहूदी धर्म, इस्लाम, हिंदु धर्म, जैन धर्म, बौद्ध धर्म, ताओ धर्म, ये सभी पूरब में जन्में हैं। यह एक स्त्रैण मन के जैसा कुछ है, और इसको ऐसा ही होना पड़ता है, क्योंकि प्रत्येक स्तर पर यिन और यांग का, पुरुष ऊर्जा और स्त्री ऊर्जा का सम्मिलन होता है को विभाजित होना पड़ता है। पूरब स्त्रैण भाग की भांति कार्य करता है और पश्चिम पुरुष भाग की भांति कार्य करता है। पुरुष मन आक्रामक होता है; विज्ञान आक्रामक है। स्त्रैण मन ग्रहणशील होता है; धर्म ग्रहणशील है। विज्ञान भरपूर प्रयास करता है। यह प्रकृति को उसके रहस्य खोलने के लिए बाध्य करता है। धर्म मात्र प्रतीक्षा करता है, प्रार्थना करता है और प्रतीक्षा करता है, उकसाता है किंतु बाध्य नहीं करता, पुकारता है, चिल्लाता है, रोता है, फुसलाता है, प्रकृति को करीब-करीब बहला कर इसको रहस्य और गोपनीयताए प्रकट करने के लिए राजी कर लेता है, लेकिन यह प्रयास स्त्रैण है। इसलिए ध्यान। जब प्रयास, पुरुष का, आक्रामक होता है तो प्रयोगशाला की भांति होता है प्रकृति को सताने के लिए, प्रकृति को अपने रहस्य अनावृत करने के लिए, कुंजी सौंप देने के लिए, भांति-भांति के उपकरण। पुरुष का मन एक आक्रमण है। पुरुष का मन एक बलात्कारी मन है, और विज्ञान एक बलात्कार है। धर्म प्रेम करने वाले का मन है; यह प्रतीक्षा कर सकता है यह अनंतकाल तक प्रतीक्षा कर सकता है।
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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