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________________ और निःसंदेह इच्छा-शून्यता का अंत कभी नहीं होता है वह व्यक्ति जिसने इसको उपलब्ध कर लिया है, वह मुक्त हो गया है, वह कभी वापस नहीं लौटता; क्योंकि विकास कभी पीछे नहीं जा सकता। पीछे जाने का कोई रास्ता नहीं होता है। जब तक कि परम उपलब्ध न हो, हम ऊंचे और ऊंचे जाते हैं। किंतु वहां से वापस गिर पड़ने का कोई बिंदु नहीं है। ' और इस प्रक्रिया का कोई प्रारंभ नहीं है; जैसे कि जीने की इच्छा शाश्वत होती है।' अपनी इच्छा के प्रति सजग होने का प्रयास करो, क्योंकि अब तक का तुम्हारा जीवन यही है। इसकी पकड़ में मत आओ। इसे समझने का प्रयास करो और लड़ने का प्रयास भी मत करो, क्योंकि इससे तुम दूसरे ढंग से बार-बार इसी में फंस जाओगे। बस इसको समझने का प्रयास करो कैसे यह तुमको पकड़ लेती है, कैसे यह तुम्हारे भीतर प्रविष्ट हो जाती है और तुमको नितांत अचेतन बना देती है। मैंने सुना है, एबी, मेरे पास तुम्हारे लिए एक आश्चर्यजनक सौदा है। मैं दो सौ डालर में एक हाथी ला सकता हूं। लेकिन इज्जी, मूर्ख मत बनो हाथी को लेकर मुझको क्या करना है? तुमको हाथी को लेकर क्या करना है? तुम खुद मूर्ख मत बनो। सौदे के बारे में सोचो। बस दो सौ डालर में हाथी तुम्हें कहां मिल सकता है, बताओ मुझे? लेकिन मेरे पास दो कमरों का फ्लैट है। हाथी को मैं कहां रख सकता हूं? आखिर मामला क्या है तुम्हारे साथ? क्या तुमको एक अच्छा सौदा समझ में नहीं आ रहा है? वास्तव में मामला यह है कि तुम्हारे लिए मेरे पास एक बेहतर खबर है। यदि तुम चाहो तो तुम्हारे लिए मैं तीन सौ डालर में दो हाथी ला सकता हूं। वाह, अब तुम ठीक बात कर रहे हो। अब एक व्यक्ति, जिसके पास केवल दो कमरों का फ्लैट है, इस बात को पूरी तरह भूल गया है। इच्छा का निरीक्षण करो, यह तुम्हें मूर्ख बनाती रहती है, यह तुम्हें रास्ते से भटकाती चली जाती है। यह तुमको भ्रर्मों में, स्वप्नों में ले जाती रहती है। निरीक्षण करो। इसके पूर्व कि तुम कोई कदम उठाओ, निरीक्षण करो, सजग रहो और धीरे-धीरे तुम देखोगे कि इच्छा खो जाती है, और वह ऊर्जा जो इच्छा में फंसी हुई थी, मुक्त हो जाती है। लाखों हैं इच्छाएं, और जब उन सभी इच्छाओं से ऊर्जा मुक्त हो जाती है तो तुम ऊर्जा की एक विराट उत्ताल तरंग बन जाते हो। तुम ऊपर की ओर और ऊंचे उठने लगते हो, स्वभावत: भीतर ऊर्जा का कुंड भरता चला जाता है। ऊर्जा
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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