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________________ छोड़ता हूं आप मेरे मन हो जाइए। मैं आपको सुनूंगा और अपने मन को नहीं सुनूंगा। यदि कोई मत विभिन्नता होती हैं तो मैं आपके साथ रहूंगा अपने मन के साथ नहीं- यही है सारी बात। यदि कोई निर्णय लिया जाना है तो मेरे अपने मन की तुलना में आप मेरे अधिक निकट रहेंगे-यही है सब कुछ। जो व्यक्ति शिष्य नहीं है वह सीमा रेखा पर खड़ा रहता है और वह कहता है, जो कछ मझको पसंद है या जिस बात से मैं सहमति अनुभव करता हूं मैं चुनाव कर लूंगा; और जो कुछ मैं पसंद नहीं करता और जिससे मैं संतुष्ट नहीं हूं उसे मैं नहीं चुनूंगा। जो कुछ भी तुम्हें पसंद है, तुम्हारे मन को औरऔर शक्तिशाली बना देगा; जो कुछ तुम्हें नापसंद है इससे तुम्हारे मन का कोई रूपांतरण नहीं होगा। तुम और ज्ञानी हो जाओगे। तुम मुझसे अनेक बातें सीख लोगे, किंतु मुझको तुम नहीं सीखोगे। इसलिए यह तुम पर निर्भर है। मेरे लिए तुम्हें शिष्य बना लेना कोई प्रश्न नहीं है, यह तुम पर निर्भर है। जब अधिक उपलब्ध है तुम कम के लिए निर्णय करते हो-जैसा है, ठीक है। मैं तुमसे एक कहानी कहता हूं। एक चिकित्सक के पास नगर के विभिन्न छोरों से आने वाले दो रोगी आया करते थे, दोनों पुराने अनिद्रा के रोगी थे। उन्हें नींद लाने में सहायता के लिए उसने उनको नींद की गोलियां दीं। एक को हरी गोलियां मिलीं, दूसरे को लाल वाली। एक दिन दोनों अपनी अनिद्रा की समस्या पर चर्चा कर रहे थे और बातचीत के समाप्त होने पर एक व्यक्ति को इतना अधिक क्रोध आया कि वह भाग कर चिकित्सक के पास गया और बोला, ऐसा कैसे होता है कि जब मैं अपनी नींद वाली गोलियां लेता हं तो मैं सो जाता हूं और स्वप्न देखता हूं कि मैं बंदरगाह का मजदूर हूं और लिवर-मूल पर स्टीमर से निरर्थक सामान उतार रहा हूं तेल और गंदगी से लथपथ हूं जब कि मिस्टर ब्राउन अपनी गोलियां खाते हैं और स्वप्न देखते हैं कि वे बरामूडा के समुद्र तट पर अर्धनग्न सुंदर युवतियों से घिरे हुए लेटे हए हैं, वे सभी उनको सहला रही हैं, चम रही हैं, उनका समय शानदार ढंग से कट रहा है? चिकित्सक ने अपने कंधे झटके और कहा, समझने का प्रयास कीजिए, आप स्वास्थ्य बीमा योजना के सदस्य हैं और श्री ब्राउन एक निजी रोगी हैं। इसलिए मैं तुमसे इतना ही कह सकता हूं समझने का प्रयास करो! आज इतना ही।
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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