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________________ नहीं मिला है - बच्चे और मां का संबंध। वे सिकुड़ जाते हैं। ये बच्चे कभी सामान्य न होंगे। किसी कारण से विस्तीर्ण होने की पहली लालसा नहीं घट पाई है। मां और बच्चे के बीच का संबंध संसार में पहला प्रवेश है। है तुम संसार में अपनी मां के प्रेम के साथ प्रविष्ट होते हो। तुम्हारा संसार में प्रवेश होता है क्योंकि तुम अपनी मां से संबंधित होते हो, और तुम सीखते हो कि किस भांति संबंधित हुआ जाए। वह उष्णता जो मां और बच्चे के बीच प्रवाहित होती है ऊर्जा का पहला आदान-प्रदान है। यह चरम रूप से कामुक क्योंकि सारी ऊर्जा कामुक है। बच्चा मुस्कुरा रहा है, मां मुस्कुरा रही है, प्रचंड मात्रा में ऊर्जा का आदान-प्रदान हो रहा है। मां बच्चे को दुलार कर रही है, बच्चे का आलिंगन कर रही है, बच्चे का चुंबन ले रही है, एक विराट ऊर्जा बच्चे को दी जा रही है, और बच्चा प्रतिसंवेदन के लिए तैयार हो रहा है। शीघ्र ही वह दिन आ जाएगा जब बच्चा मां का आलिंगन करेगा और उसका चुंबन लेगा। वह बड़ा है, न केवल लेने के लिए तैयार, बल्कि देने के लिए भी तत्पर है। यह उसकी पहली सीख है फिर वह भाइयों और बहनों और पिता और चाचाओं के साथ उठेगा- बैठेगा, और यह वर्तुल और-और बड और बड़ा होता जाएगा- विद्यालय में और महाविद्यालय में और विश्वविद्यालय में और फिर ब्रह्मांड में व्यक्ति आगे बढ़ता जाता है। जितना अधिक तुम संबंधित हो उतना ही अधिक से अधिक तुम हो अस्तित्व की खोज संबंधित होने के माध्यम से होती है। प्रत्येक संबंध एक दर्पण है। यह तुम्हारे अस्तित्व का एक भाग तुम्हें दिखाता है यह तुम्हारे बारे में कुछ प्रदर्शित करता है तुम्हारे बारे में यह कुछ प्रतिबिंबित करता है। जब तुम इतने अधिक विकसित हो जाओ और अनंत तक विस्तीर्ण हो जाओ तब अंतिम संबंध परमात्मा से होता है यह अंतिम संबंध है। यदि तुम संबंधों से भागते हो, जैसा कि ये तथाकथित धार्मिक लोग करते हैं... वे कुछ बहुत असंगत कार्य कर रहे हैं। वे परमात्मा से संबंधित होने में समर्थ नहीं हो पाएंगे, क्योंकि उन्होंने सीखा ही नहीं कि संबंधित किस प्रकार हुआ जाए। उन्होंने नहीं सीखा कि संबंधों में कैसे उतरा जाए। और याद रखो परमात्मा से संबंधित होना महानतम, सर्वाधिक खतरनाक संबंध है। अभी उसी दिन मैं एक ईसाई, एक बहुत सुंदर व्यक्ति, जो रूस की जेलों में कई साल रहा है, के संस्मरण पढ़ रहा था। तीन साल वह लगातार एक भूमिगत कोठरी में, जमीन से तीस फीट नीचे रहा। लगातार तीन वर्ष तक उसने जरा भी धूप कोई फूल, कोई तितली, चंद्रमा तक नहीं देखा। उसने संतरी के अतिरिक्त किसी आदमी का चेहरा भी नहीं देखा। तीन साल का यह समय पगला देने वाला था। न पढ़ने के लिए कोई पुस्तक न करने के लिए कुछ कार्य उसे तो यह भी नहीं पता था कि इस समय दिन है या रात, बाहर संसार में..सूर्योदय हुआ भी या नहीं। वहां कोई समाचार पत्र भी नहीं था, संसार में क्या हो रहा था इसकी कोई भी खबर नहीं, कुछ भी नहीं। वह पूरी तरह असंबद्ध था। उसने एक काम करना आरंभ कर दिया - आत्यंतिक रूप से सुंदर था यह कार्य, उसने परमात्मा से बात
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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