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________________ हिंदू हूं, और मैं एक भारतीय हूं या मैं एक अंग्रेज हूं मैं ब्रिटिश हूं, या यह और वह, बस स्वयं को रंगे हाथ पकड़ लो। अंदर गहरे में अपने चेहरे पर थप्पड़ लगाओ और कहो, 'क्या बेवकूफी है।' धीरे-धीरे समाज के दवारा परिभाषित मत होओ। तब तुम उस अव्याख्य, अपने असली, प्रमाणिक अस्तित्व को पा लोगे। 'यदयपि अनेक कृत्रिम मनों की गतिविधियां भिन्न-भिन्न होती हैं, फिर भी एक मूल मन उन सभी का नियंत्रण करता है।' इसलिए तुम्हारा कृत्रिम मन चाहे जैसा भी हो, वस्तुतः, वास्तव में, इसके पीछे छिपा मौलिक मन इन सभी का नियंत्रण करता है। नियंता को पाओ, यह खोजने का प्रयास करो कि समाज के दवारा विकृत किए जाने से, प्रदूषित किए जाने से पूर्व, समाज के तुम्हारे भीतर प्रविष्ट होने से, तुम्हारे बारे में योजना बनाने से पूर्व, और समाज के द्वारा तुम्हारा प्रचंड रूप नष्ट करने से पूर्व मूलतः तुम कौन हो। झेन में वे इसको कहते हैं : अपने उस मौलिक चेहरे की खोज जो तुम्हारे पास तब था जब तुम्हारा जन्म नहीं हुआ था और जो तुम्हारे पास तब होगा जब तुम पुन: मरोगे; वह मौलिक चेहरा समाज के द्वारा अस्पर्शित। यही तुम्हारा स्वभाव, तुम्हारी आत्मा, तुम्हारा अस्तित्व है। मौलिक चेहरे को उपलब्ध करके तुम्हारा पुनर्जन्म हो जाएगा, तुम एक द्विज, दुबारा जन्मे हुए हो जाओगे। तुम वास्तव में एक ब्राह्मण; वह जो जनता है, हो जाओगे। फिर पुन: प्रत्येक वस्तु तुम पर उसी भांति उद्घाटित हो जाएगी जिस भांति यह जन्म के समय उद्घाटित हुई थी, क्योंकि तुम पुन: जन्मे हुए होओगे। किंतु इस बार एक विराट अंतर होने जा रहा है, तुम सजग होओगे। पहली बार तुम चूक गए थे; इस बार तुम नहीं चूकोगे। पहली बार यह प्राकृतिक रूप से घटित हुआ था, इस बार यह तुम्हारे बोध, तुम्हारी सजगता से घटित होगा। तुम इसके प्रति चेतन होओगे। तुम स्वयं को दुबारा पुनर्जन्म लेता हआ, जन्म लेता हआ, अतीत से उभरता हआ संशय और उलझन के बादलों में विचारों, पूर्वाग्रहों, अहंकारों, मनों, संस्कारिताओ, सभी से उदित होते हुए, कुंआरे, शुद्ध रूप में देखोगे, तब तुम पुन: उस शक्ति को, उस अस्तित्व को, जो तुम हो, देखोगे। तो पहले यह जन्म पर घटित होता है, दुबारा वह समाधि में घटता है। मध्य में-तीन उपायों, औषधियों, मंत्र-जाप, तपश्चर्याओं के माध्यम से इसकी व्यवस्था की जा सकती है लेकिन ये तीनों विधियां धोखेबाजी के, छल के उपाय हैं। और तुम परमात्मा के साथ छल नहीं कर सकते, तुम स्वयं के साथ छल कर सकते हो, इसको याद रखो। आज इतना ही।
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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