SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 246
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उसके निष्कासन का एक पत्र लिखा है। वह निष्कासित कर दी गई है। यह बात बेवकूफी जैसी लगती है, यह राजनीति मालूम होती है। अब उसको उनकी सभाओं में प्रवेश करने या उनमें भागीदारी करने की इजाजत नहीं दी जा सकती है। अपनी शब्दावली में उन लोगों ने कह दिया, हमारी ओर से अब तुम्हें पानी में डाल दिया गया है। उसकी निंदा की गई। हर ओर यही चलता रहता है। साइटोलाजी भी लोगों के साथ यही करती है। एक बार तुम साइटोलाजी में आ गए और तुम इसको छोड़ दो, तो बस जैसे अमिदा को पानी मे डाल दिया गया है, वे तुम्हें एक सूचना भेजते हैं कि अब तुम एक शत्रु हो । दुश्मन! लेकिन ऐसा है, सदा से। ऐसा कैसे हुआ है। हमेशा स्मरण रखो, जहां कहीं भी तुम्हारा मन संकीर्ण किया जा रहा हो वहां से भाग जाओ, यह राजनीति है। यह अहंकार का खेल है। धर्म तुम्हें विस्तीर्ण करता है। धर्म तुम्हें इतना अधिक विस्तीर्ण कर देता है कि तुम्हारे चारों ओर का सारा मकान धीरे- धीरे खो जाता है। तुम बस आकाश के नीचे पूर्णतः आवरण विहीन अस्तित्व के साथ संवाद में होते हो। अस्तित्व के और तुम्हारे मध्य कुछ भी नहीं रहता। यह परिस्थिति जन्म के समय सहजता से, स्वाभाविक रूप से तत्क्षण अर्जित कर ली जाती है। सिद्धियां जन्म के समय प्रकट होती हैं - जन्म के समय सभी कुछ प्रकट होता है प्रश्न केवल उस पर पुनः दावा करने का है। प्रश्न है उसे करने का। यह कोई अन्वेषण नहीं है, यह एक पुनः अन्वेषण होने जा रहा है। पुनः स्मरण अनेक लोग मेरे पास आते हैं और वे पूछते हैं, यदि समाधि घट जाए, यदि संबोधि घट जाती है, तो हम उसे पहचान कैसे पाएंगे कि यह वही है? और मैं उनसे कहता हूं तुम चिंता मत लो; तुम इसको पहचान लोगे क्योंकि तुम जानते हो कि यह क्या है। तुमने इसको विस्मृत कर दिया है। एक बार यह पुनः घट जाए, अचानक तुम्हारी चेतना में, स्मृति उभरेगी, सतह पर आ जाएगी और तुम इसे पहचान लोगे । और इसे चार ढंगों से अर्जित किया जा सकता है। पहला है. औषधियों के द्वारा। हिंदू लोग हजारों वर्षों से औषधियों का निर्माण करते रहे हैं। पश्चिम में इसकी सनक नई है, भारत में यह बहुत प्राचीन काल से है। पतंजलि कहते हैं. 'इन्हें औषधियों से, मंत्रों के जाप से, तपश्चर्याओं से या समाधि से भी अर्जित किया जा सकता है। वे केवल समाधि के पक्ष में हैं, लेकिन वे एक बहुत ही वैज्ञानिक व्यक्ति हैं। उन्होंने कुछ भी बाहर नहीं छोड़ा है।
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy