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________________ बौद्धिक रूप से तुम इसे समझ जाते हो, लेकिन तुम्हारा अतीत बाधा देता है। अब तुमको एक महत् चूनाव, एक बड़ा निर्णय करना पड़ेगा : अतीत की सुननी है या अपने वर्तमान-ताजी समझ की सुननी है। तम किसके साथ रहने जा रहे हो। अपने मृत और बोझिल अतीत के साथ या अपनी ताजी समझ के साथ जो कि अभी-अभी तुम्हें घटित हुई है। एक बार दो मित्र थे, उनमें से एक को दूसरे के साथ प्रयोगात्मक मजाक करने का बेहद शोक था। एक संध्या, यह जान कर कि उसका मित्र चर्च के प्रांगण के छोटे रास्ते से होकर गुजरने वाला है, वह अंधेरे कब्रिस्तान की एक कब के पत्थर के पीछे छिप कर बैठ गया। कुछ समय बाद ही उसने अपने मित्र की आहट सुनी, जैसे ही वह निकट आया, मजाकिया मित्र ने खून जमा देने वाली चीत्कार मारी। पहला व्यक्ति घबड़ा कर अपने रास्ते पर थम गया और कहने लगा, क्या यह तुम हो जॉन? वह बोला। वहां से कोई उत्तर न आया। मुझे पता है कि यह तुम हो जॉन, उस मित्र ने कहा, मैं जानता हूं कि यह तुम हो जॉन, लेकिन कुछ भी हो मैं तो भागने वाला हूं। यदि तुम जानते हो, तो चाहे कुछ भी हो तुम भाग क्यों रहे हो? ताजी समझ के साथ जीयो। इस क्षण के साथ जीयो। अतीत के दवारा पथभ्रष्ट मत होओ। सदैव ताजे और नये और उसके साथ रहो जिसका तुम्हारी चेतना के क्षितिज पर अभी-अभी उदय हो रहा है, तभी तुम विकसित होओगे। यदि तुम सदैव पुराने, बीते हुए के साथ रहोगे तो तुम बीते हुए हो जाओगे, तुम कभी विकसित नहीं होओगे। विकास वर्तमान में है, विकास ताजे, युवा का है, विकास नये का है। इसलिए प्रतिदिन उस धूल को झाडू दो जो सामान्यत: तुम्हारी चेतना के दर्पण पर जम जाती है। अपने दर्पण को स्वच्छ रखो ताकि जो कुछ भी तुम्हारे सम्मुख आए पूरी तरह प्रतिबिंबित हो जाए। और प्रतिबिंबित करते हुए जीयो, उस ताजे परावर्तन के साथ जीयो। 'मैं किसी अन्य गुरु के निर्देशन में साधना कर रहा था। उस समय मेरे लिए काम की समस्या नहीं थी।' तुम्हें इसकी समस्या नहीं होगी यदि तमको सिखाया जाए कि इसका दमन किस भांति किया जाए। इसका इतनी गहराई तक दमन किया जा सकता है कि तुम ऐसा अनुभव करने लगो जैसे कि यह वहां नहीं है। 'लेकिन मेरे मन में तनाव रहा करते थे।' तनाव आ जाएंगे क्योंकि तनावों के बिना कोई दमन नहीं हो सकता है। वास्तव में तुम्हारे मन की तनावग्रस्त अवस्था सूक्ष्म दमनों के प्रतिबिंबों के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं हैं। यदि तुम्हारे भीतर कोई भी दमन नहीं है तो ही तम विश्रांत हो सकते हो। जिस व्यक्ति में कोई भी दमन न हो वह
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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