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________________ जापान में आश्रमों में छोटे से घर, टी हाउस, चाय-घर हुआ करते हैं। जब वे किसी चाय-घर में जाते हैं, तो वे इस भांति जाते हैं जैसे कोई चर्च या मंदिर में जा रहा हो। वे स्नान करते हैं, वे नये स्वच्छ वस्त्र धारण करते हैं, वे अपने जूते बाहर छोड़ देते हैं, वे मौन में, आशीष में चलते हैं; वे बैठ जाते हैं।.. .और यह एक लंबा अनुष्ठान है। यह कोई ऐसा नहीं है कि तुम गए और चाय ली और पी और तुम चले आए, इतनी जल्दबाजी नहीं। देवताओं के साथ शुभ व्यवहार होना चाहिए, और चाय दे जागृति की देवता, इसलिए वे मौन में बैठेंगे, और केटली अपना गीत गाती रहेगी, पहले वे इस गीत को सुनेंगे। अभी वे तैयारी कर रहे हैं। वे गाती हई केटली पर ध्यान लगाएंगे। फिर उनको कप और प्लेट दिए जाएंगे। वे कपों और प्लेटों को छुएंगे, उनको देखेंगे, क्योंकि वे कला की कृतियां हैं। और कोई बाजार से खरीदे हुए कप उपयोग करना नहीं पसंद करता है। प्रत्येक आश्रम अपने स्वयं के कप और प्लेट बनाते हैं। धनी लोग अपने स्वयं के लिए बनाते हैं। गरीब लोग यदि अपने स्वयं के लिए कप और प्लेट बनाने के व्यय को वहन न कर सकें तो वे बाजार से खरीद लाते हैं, उनको तोड़ देते हैं, उनको पुन: जोड़ते हैं, तब वे पूर्णत: अनूठे बन जाते हैं। तब चाय उडेली जाती है। और प्रत्येक, गहन, ग्राह्य, ध्यानपूर्ण भाव-दशा में होता है, उनकी श्वास धीमी और गहरी चल रही होती है, और तब चाय पी जाती है, जैसे कि कुछ दिव्य तुम पर बरस रहा हो। अब महात्मा गांधी इसके बारे में सोच भी नहीं सकते। उनके आश्रम में चाय की अनुमति नहीं थी काली सूची, निषिद्ध वस्तुओं में थी चाय। यह तुम्हारे दृष्टिकोण पर निर्भर करता है। मैं तुमसे जो कहना चाहता हूं वह यह है कि यह तुम्हारे ऊपर निर्भर करता है कि तुम कितनी समस्याएं निर्मित करना चाहते हो। जितनी संभव हो सके उतनी समस्याएं गिरा दो। जितनी कम समस्याएं तुम्हारे पास हों उतना ही उत्तम है, क्योंकि तब, यदि तुम उन कुछ को नहीं छोड़ सकते हो, यदि वे वास्तव में तम्हारे दृष्टिकोण के कारण नहीं हैं बल्कि जीवन की असली समस्याएं हैं, तो उनका समाधान किया जा सकता है। मैने सुना है, एक व्यक्ति मनोचिकित्सक के पास गया, उस बेचारे की आंखों के नीचे काले घेरे बने हुए थे, वह बहुत थका हुआ लग रहा था। मैं हर रात स्वप्न देखता हूं डाक्टर साहब, उसने अपने चिकित्सक से कहा। पिछली रात का सपना भयावह था, मैं एक बड़े वायुयान में हूं मेरा पैराशूट तैयार है, हम चालीस हजार फीट की ऊंचाई पर उड़ रहे हैं, जहां से छलांग लगा कर मैं नई ऊंचाई से कूदने का का रिकार्ड स्थापित करने वाला हं। हम लोग चालीस हजार फीट की ऊंचाई पर हैं-मैंने दरवाजा खोला, मैंने एक कदम आगे बढ़ाया, मैंने पैराशूट की रस्सी खींची-आप सोच सकते हैं कि क्या हआ होगा? डाक्टर ने कहा. मुझे ऐसा कोई खयाल नहीं आता। उस व्यक्ति ने कहा. मेरा पाजामा खुल कर गिर पड़ा।
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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