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________________ यदि तुम समय को सतोरी, समाधि की आंखों से देख सको, समय तिरोहित हो जाता है। लेकिन यह अंतिम चमत्कार है, इसके उपरांत सिर्फ कैवल्य, मुक्ति है। जब समय खो जाता है, सब कुछ खो जाता है- क्योंकि इच्छा, महत्वाकांक्षा, प्रेरणा का सारा संसार वहां है, क्योंकि हमारे पास समय ही गलत अवधारणा है। समय निर्मित किया गया है समय एक प्रक्रिया की भांति-भूत, वर्तमान, के रूप मैं- इच्छाओं द्वारा निर्मित किया गया है। पूरब के संतों की श्रेष्ठतम अंतर्दृष्टियों में से एक बात यही है कि प्रक्रिया के रूप में समय वास्तव में इच्छा का प्रक्षेपण है। क्योंकि तुम किसी चीज की इच्छा रखते हो, तुम भविष्य निर्मित करते हो और क्योंकि तुम आसक्त होते हो, तुम अतीत निर्मित करते हो क्योंकि तुम उसे नहीं छोड़ सकते जो अब तुम्हारे सामने नहीं रहा, और तुम इससे चिपके रहना चाहते हो, तुम स्मृति निर्मित करते हो और क्योंकि वह जो अभी नहीं आया तुम इसकी अपने निजी ढंग से अपेक्षा करते हो, तुम भविष्य निर्मित करते हो। भविष्य और अतीत मन की अवस्थाएं हैं, समय के भाग नहीं हैं। समय शाश्वत है। यह बंटा हुआ नहीं है। यह एक है, समय है। क्षण तत्कमयो संयमाद्विवेकज ज्ञानम् । जिसने यह जान लिया कि क्षण और समय की प्रक्रिया क्या है, वह परम के प्रति बोधपूर्ण हो जाता है; समय के बोध से व्यक्ति को परम का बोध प्राप्त हो जाता है। क्यों? क्योंकि परम की सत्ता. वास्तविक समय की भांति है। तुम क्रमागत समय में जीते हो, तो तुम समाचार पत्र के संसार में जीते हो तब तुम राजनेताओं, पागल, महात्वाकांक्षी लोगों के संसार में जीते हो या अगर तुम मनोवैज्ञानिक समय में जीते हो, तो तुम पागल, सनकी, या कल्पना, स्वप्न, काव्य के संसार में जीते हो । एक नया डाक्टर पागलखाने में चारों तरफ देख रहा था। उसे एक रोगी मिला, उस डाक्टर ने रोगी से पूछा, आप कौन हैं? वह व्यक्ति तन कर खड़ा हो गया और बोला, मैं श्रीमान, नेपोलियन हूं। डाक्टर ने पूछा वास्तव में? आपसे यह किसने कहा? उस रोगी ने कहा : ईश्वर ने बताया, और कौन बता सकता है? पड़ोस के बिस्तर पर पड़े हुए एक छोटे से आदमी ने ऊपर की ओर देखा और बोला, मैंने नहीं कहा। पागलखानों में जाओ; यह जाने लायक स्थान है बस लोगों को देखो वे एक कल्पना के संसार में जी रहे हैं। वे सामूहिक संसार से पूरी तरह बाहर चले गए हैं और वे सार्वभौमिक संसार में नहीं जा पाए हैं, वे मध्य में लटके हैं, वे सीमा रेखा पर हैं।
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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