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________________ पूरब ने पुराण लिखे हैं। पुराण पूर्णत भिन्न हैं, ये मनोवैज्ञानिक समय के अनुरूप हैं। क्रमागत समय रेखीय रूप में, एक सरल रेखा में चलता है। इसीलिए पश्चिम में कहा जाता है कि सूर्य के नीचे नया कुछ भी नहीं है - लेकिन इतिहास कभी अपने आप को दोहराता नहीं है। समय एक रेखा में चलता है अतः इतिहास एक पंक्ति में स्वयं को किस भांति दोहरा सकता है हर घटना अनूठी प्रतीत होती है। पूरब में हम कहते हैं कि इतिहास एक चक्र है यह सीधी रेखा में नहीं चलता, इसकी गति वर्तुलाकार है और पूरब में हम कहते हैं सूर्य के नीचे नया कुछ भी नहीं है और इतिहास स्वयं को लगातार दोहराता रहता है। यह सभी पुनरुक्ति है, अत: क्यों चिंता करना कि कृष्ण कब जन्मे ? पूरब में हम कहते हैं कि हर युग में कृष्ण बार-बार जन्म लेते हैं, यह एक चक्र है सृजन और विनाश के मध्य के हर युग में कृष्ण बार-बार जन्म लेते है उनका रूप भिन्न हो सकता है, उनका नाम अलग हो सकता है, लेकिन वे बार बार जन्म लेते हैं, इसलिए चिंता क्यों करनी ? बस इसका वर्णन कर दो कि वे कौन हैं और गैर-जरूरी विवरणों की बहुत अधिक चिंता मत लो, इसलिए कृष्ण का यह रूप हो सकता है कि किसी विशिष्ट कृष्ण का न हो। यह सभी कृष्णावतारों का समन्वित रूप भी हो सकता है। यह इसी प्रकार का है। यदि तुम पूछो, 'क्या बुद्ध की मूर्ति उनका सही प्रतिरूप है?' यह नहीं है फिर भी यह सत्य है कि बुद्ध को इसी भांति का होना चाहिए। यह प्रश्न नहीं है कि यह बुद्ध-गौतम सिद्धार्थ, शुद्धोदन के पुत्र, जो एक निश्चित तारीख को कपिलवस्तु में जन्में थे, क्या इस मूर्ति की भांति थे। नहीं यह बात ही नहीं है लेकिन इस मूर्ति में सभी बुद्ध सदैव समाहित हैं। उनका प्रतिनिधित्व है। यह मूर्ति बस बुद्धत्व की है, किसी विशेष बुद्ध की नहीं है। इसमें सारे बुद्ध समा गए हैं। अब पश्चिम के लिए यह कठिन है। तुम बुद्ध और महावीर की मूर्तियों के बीच अंतर नहीं कर सकते हो, बस एक छोटा सा चिह्न उनके पैरों के नीचे होता है, वरना उनमें तुम कोई भेद नहीं कर सकते हो जैनों के चौबीस तीर्थंकर चौबीस महान सदगुरु हैं, लेकिन तुम कोई अंतर नहीं कर सकते हो। किसी जैन मंदिर में जाओ और बस देखो, वे सभी एक सी दिखती हैं। ऐसा हो ही नहीं सकता कि चौबीस व्यक्ति एक से हों। असंभव। दो व्यक्ति कभी एक से नहीं हो सकते, लेकिन वे मूर्तियां बाहर का प्रतिनिधित्व नहीं करती हैं। वे अंतर अनुभूति का प्रतिनिधित्व करती हैं। ही, दो व्यक्ति एक हो नहीं सकते लेकिन दो अनुभूतियां एक सी हो सकती हैं। जब तुम प्रेम में पड़ते हो और कोई दूसरा भी प्रेम में पड़ता है तो प्रेम एक सा ही होता है। जब तुम ध्यान करते हो, तथा कोई और भी ध्यान करता है तो ध्यान एक जैसा ही है। जब तुम संबुद्ध होते हो और कोई दूसरा भी संवुद्ध होता है तो संबोधि एक ही है ये जैन तीर्थकरों की चौबीस मूर्तियां चौबीस व्यक्तियों की नहीं हैं बल्कि उस एक अवस्था की है जो उनमें प्रतिबिंबित हुई। वे सभी प्रतिनिधि हैं।
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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