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________________ परमात्मा ने तुम्हें इतना अधिक समय दिया। वह उस व्यक्ति को थोड़ा पहले भी वापस बुला सकता था, लेकिन उसने तुमको पर्याप्त समय दिया और तुमने प्रेम किया। प्रेम में एक पल भी शाश्वतता बन जाता है। तुम इतना अधिक प्रसन्न हो कि समय रुक जाता है। एक छोटा सा जीवन बहुत, बहुत अनंत हो जाता है। लेकिन यह इस प्रकार से नहीं हो सका है, इसलिए मैं मीरा की पीड़ा को समझ सकता हूं। लेकिन उसे इस बात का सामना करना पड़ेगा और इसे समझना पड़ेगा। यह केवल पति की मृत्यु का ही प्रश्न नहीं है। यह कोई इतनी बड़ी समस्या नहीं है। पतियों की मृत्यु होती है, पत्नियों की मृत्य होती है, यह कोई बड़ी समस्या नहीं है, स्वाभाविक है यह। समस्या यह है कि प्रेम नहीं घट सका। यह एक स्वप्न, एक इच्छा बना रहा और अब यह अतृप्त रहेगा। तुम्हें वह व्यक्ति पुन: नहीं मिल सकता, अत: यह अध्याय पूरा नहीं किया जा सकता। यह अपूर्णता एक घाव की भांति कार्य करेगी। इसीलिए इसने अधिक लंबा समय ले लिया है। यह थोड़ा और अधिक समय लेगी। मनोवैज्ञानिक समय तुम्हारा आंतरिक समय है, और हम सदैव ही क्रमागत समय, ग्रीनविच समय में जीया करते हैं यह वैयक्तिक नहीं है। मनोवैज्ञानिक समय व्यक्तिगत है और यह प्रत्येक का अपना निजी होता है। यदि तुम प्रसन्न हो, तुम्हारा समय का बोध धीमा हो जाता है। यदि तुम अप्रसन्न हो, समय की लंबाई बढ़ जाती है। यदि तुम ध्यान में गहरे उतरो समय रुक जाता है। वस्तुत: पूरब में हम मन की अवस्थाओं को समय से मापते रहे हैं। यदि समय पूर्णत: रुक जाता है तो यह आनंद की अवस्था है। यदि समय बहुत अधिक धीमा हो जाए तो यह संताप की अवस्था है। ईसाइयत में कहा गया है कि नरक शाश्वत है। बर्टेड रसल ने एक पस्तक लिखी है : वॉय आई एम नॉट ए क्रिश्चियन? मैं ईसाई क्यों नहीं हूं? इसमें वह बहुत से तर्क देता है कि वह ईसाई क्यों नहीं है। उसके तर्कों में से एक यह है कि 'मैं भरोसा नहीं कर सकता कि नरक शाश्वत हो सकता है, क्योंकि जो भी पाप हों, वे सीमित हैं। तुम असीमित पाप नहीं कर सकते हो। इसलिए सीमित पापों के लिए असीमित दंड-यह अन्यायपूर्ण है।' यह तर्क सीधा है। कोई भी बर्टेड रसल के विरोध में तर्क सकता; वह एक साधारण तथ्य कह रहा है। वह स्वयं कहता है, 'यदि मुझे उन सभी पापों का दंड दे दिया जाए जो मैंने अपने पूरे जीवन में किए हैं, तो भी यह चार वर्ष के कारावास से अधिक नहीं होगा। और यदि वे पाप भी सम्मिलित कर लिए जायें जो मैंने नहीं किए हैं बल्कि केवल सोचे हैं तो अधिक से अधिक आठ वर्ष, और थोड़ा सा बढ़ाए तो दस वर्ष। लेकिन अनंत, शाश्वत नरक?' तब परमात्मा बहुत प्रतिशोधपूर्ण प्रतीत होता है, दिव्य नहीं मालूम पड़ता, ईश्वर जैसा नहीं लगता बहुत भयानक, शैतानी ताकत की तरह दिखाई पड़ता है। क्योंकि तुमने एक स्त्री से प्रेम कर लिया जो तुम्हारी पत्नी नहीं थी, अब तुम दंडित होगे-अनंत काल तक। यह बहुत अधिक है। तुमने कोई इतना बड़ा पाप नहीं कर दिया है। प्रेम में पड़ना मानवीय है, और जब कोई प्रेम में पड़ जाता है तो यह तय करना कठिन है कि ऐसी स्त्री से प्रेम किया जाए या
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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