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________________ चौथा : अभिमान, इसमें उसके बारे में अभिमान सम्मिलित है जिसे मैंने बाद में अपनी शांतिमयता के रूप में सोचना आरंभ कर दिया है। क्या इनसे निबटने के लिए ध्यान पर्याप्त है, या किसी अतिरिक्त चीज की आवश्यकता पड़ती है, जैसे कि होशपूर्वक उनमें अति तक संलग्न हो जाना, या उन्हें नजर अंदाज करने का प्रयास, या शायद सचेतन रूप से उनकी उपेक्षा करना? कृपणता तुम्हारे भीतर करीब-करीब एक अंत-निर्मित गुण बन चुकी है। समाज का पूरा ढांचा इसे निर्मित करता है। यह चाहता है कि तुम लोगों से चीजें छीन लो और दो मत। यह तुम्हें महत्वाकांक्षी बनाता है, और महत्वाकांक्षी व्यक्ति कपण हो जाता है। महत्वाकांक्षा कोई भी हो, सांसारिक, असांसारिक- लेकिन महत्वाकांक्षी व्यक्ति कृपण हो जाता है। क्योंकि वह सदैव भविष्य की तैयारी कर रहा है, वह जीना और बांटना सहन नहीं कर सकता। वह कभी भी अभी और यहीं नहीं होता। यदि उसके पास धन है, तो यह धन भविष्य के लिए है, अभी के लिए नहीं है। और भविष्य में तुम किस भांति बांट सकते हो? बांटना तो केवल वर्तमान में ही संभव है। उसके पास अपने बुढ़ापे के लिए बन है। या लोग हैं जिनके पास उनका चरित्र और सदगुण, उनके भविष्य के जीवन के लिए, स्वर्ग के लिए हैं। वे इसी समय कैसे बांट सकते हैं? वे संचय कर रहे हैं, भविष्य में कभी घटने वाली किसी बड़ी घटना की तैयारी में संलग्न हैं। इस समय वे निर्धन हैं। सभी महत्वाकांक्षी लोग निर्धन हैं, और उनकी निर्धनता के कारण वे कृपण हो गए हैं। वे सभी कुछ पकड़ते चले जाते हैं। व्यर्थ की चीजें वे जोड़ते रहते हैं। एक व्यक्ति के साथ मैं रहा करता था। मैं यह देख कर हैरान था कि उनका पूरा घर एक कबाड़खाना था। उस घर में तो रहना भी कठिन था; वहां कोई स्थान बचा ही न था। और वे जो भी मिले लगातार एकत्रित किए चले जाते थे। एक दिन मैं टहलने गया था, उनको मैंने सड़क के किनारे पड़ा हआ साइकिल का एक हैंडिल 3 खा, बस एक हैंडिल। उन्होंने चारों तरफ देखा, और उन्हें दिखा कि उन्हें कोई भी नहीं देख रहा है, वे हैंडिल उठा कर अपने घर ले आए, जब मैं वापस लौटा, मैं उनके घर चला गया और कहा, 'वह हैंडिल कहां है?' वे थोड़ा सा घबडाए, उन्होंने कहा : क्या आपने इसे देखा था? मैं वहां था।
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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