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________________ पांच भूतों का अर्थ है : पांच महातत्व-पृथ्वी, अग्नि जल, वायु, आकाश। तुम्हारा पहला शरीर अन्नमय कोष, भोजन-काया से पृथ्वी संबंधित है। अग्नि तुम्हारे दूसरे शरीर ऊर्जा-शरीर, बायो-प्लाज्मा, ची, प्राणमय कोष से संबंधित है, इसमें अग्नि का गुण होता है। तीसरा जल है, यह मनोमय कोष, मनस-शरीर से संबंधित है, इसमें जल का गुण होता है। मन का निरीक्षण करो, कैसे यह प्रवाह की भांति, सदा गतिशील, नदी की भांति, गतिमान रहता है। चौथा है वायु, लगभग अदृश्य, तुम उसे देख नहीं सकते, फिर भी यह वहा होती है, तुम इसे मात्र अनुभव कर सकते हो, यह 'भाव-शरीर, विज्ञानमय कोष से संबंधित है। और तब आता है आकाश, ईथर, तुम इसे अनुभव नहीं कर सकते, यह हवा से भी अधिक सूक्ष्म हो जाता है। तुम इसका विश्वास कर सकते हो, श्रद्धा कर सकते हो कि यह वहां है। यह शुद्ध आकाश है, यह आनंद है। लेकिन तुम शुद्ध आकाश से शुद्धतर, 'शुद्ध आकाश से भी सूक्ष्मतर हो। तुम्हारा यथार्थ ऐसा है कि करीब-करीब वह है ही नहीं। यही कारण है कि बुद्ध कहते हैं : अनन्ता, अनात्मा। तुम्हारा आत्म अनात्म जैसा है, तुम्हारा अस्तित्व करीब-करीब अनअस्तित्व जैसा है। अनअस्तित्व क्यों? क्योंकि यह सारे स्थूल तत्वों से काफी परे है। यह मात्र होना है। इसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता है, कोई व्याख्या इसके लिए पर्याप्त नहीं है। ये हैं पांच भूत, पांच महातत्व, जो तुम्हारे भीतर के पांच कोषों, शरीरों से संबंधित हैं। फिर तीसरा विचार सूत्र। मैं चाहता हूं कि तुम इन सभी को समझ लो, क्योंकि जिन सूत्रों पर हम चर्चा करने जा रहे हैं उनको समझने में वे उपयोगी होंगे। अब बात आती है सात चक्रों की। चक्र का वास्तविक अर्थ अंग्रेजी शब्द 'सेंटर' से नहीं है। सेंटर शब्द इसे परिभाषित या वर्णित या ठीक से अनुवादित नहीं कर सकता। क्योंकि जब हम कहते है केंद्र तो यह कोई स्थिर चीज प्रतीत होता है। और चक्र का अर्थ है कोई गतिशील चीज। चक्र शब्द का अर्थ है : पहिया, घमता हआ पहिया। अत: चक्र तुम्हारे अस्तित्व में एक गतिशील केंद्र है, करीब-करीब एक भंवर, एक बुलबुला, एक चक्रवात के केंद्र की भांति। यह गतिशील है, यह अपने चारों और एक ऊर्जा क्षेत्र निर्मित करता है। सात चक्र। पहला एक सेतु है और अंतिम भी एक सेतु है, शेष पांच, पांच महाभूतों, पांच महातत्वों और पांच बीजों से संबंधित हैं। काम एक सेतु है, तुम्हारे और स्थूलतम, प्रकृति, कुदरत के बीच। सहस्त्रार, सातवां चक्र भी एक सेतु है, तुम्हारे और अतल शून्य, परम के बीच एक पुल। ये दोनो सेतु हैं शेष पांच चक्र पांच तत्वों और पांच शरीरों से संबंधित हैं। यह है पतंजलि की व्यवस्था की रूप-रेखा। याद रहे कि यह स्वैच्छिक है। इसे एक उपाय की भांति प्रयोग किया जाना है एक सिद्धांत की भांति इस पर परिचर्चा नहीं करनी है। यह किसी धर्मशास्त्र का कोई सिद्धात नहीं है। यह मात्र एक उपयोगी मानचित्र है। तुम किसी क्षेत्र में, किसी अनजाने, अनूठे देश में जाते हो, और तुम अपने साथ एक नक्शा लेकर जाते हो। वह नक्शा वास्तव में उस क्षेत्र को चित्रित नहीं करता, एक क्षेत्र को कोई नक्शा कैसे
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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