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________________ उसने कंधे उचका कर अनुत्तरित छोड़ दिया। एक रात वह युवक अपने कमरे में बैठा सोच रहा था कि निश्चित रूप से वह इस शिक्षक के साथ कहीं नहीं पहुंचेगा जो उसके प्रश्नों के मामले में अज्ञानी प्रतीत होता है। इसी विचार के समय दरवेश वहां प्रविष्ट हुआ और उसने फुसफुसा कर गहरे विश्वास के साथ कहा 'तुम्हारे प्रश्नों का उत्तर में हूं।" , अब ये कहानियां बस कहानियों जैसी लगती हैं- पौराणिक, काल्पनिक, रूपक जैसी, या अधिक से अधिक प्रतीकात्मक। ऐसा नहीं है। वे वास्तविक हैं। यदि तुम तैयार हो तुरंत ही उच्चतर तलों से संदेशों पर संदेश तुम पर आना आरंभ हो जाते हैं वे लंबे समय से प्रतीक्षरत थे कि कोई व्यक्ति ग्रहणशील केंद्र बन जाए। जब ऐसा घटे, तो उनको इनकार मत करना। जब ऐसा हो, तो खुले और उपलब्ध रहना। पहली बात अपने हृदय को श्रद्धा को खोल देना और दूसरी बात, गर्व अनुभव मत , " करना। यदि तुम ये दो काम कर सके, परमात्मा तुम्हारे माध्यम से कार्य करना आरंभ कर देता है। तुम एक बांसुरी, एक पोला बांस बन जाते हो, वह तुम्हारे माध्यम से गाना आरंभ कर देता है। लेकिन एक बार गर्व आ गया, गीत बंद हो जाता है। एक बार तुमने श्रेष्ठ समझना आरंभ किया नहीं कि गीत कमजोर पड़ने लगता है। यह अनेक लोगों के साथ हो चुका है वे श्रेष्ठतर संसार, उच्चतर संसार, अधिभौतिक विश्व के संपर्क में आए और तभी उन्होंने गर्व अनुभव करना आरंभ कर दिया; तुरंत ही या कुछ समय के अंतराल में यह संपर्क पुनः खो गया, वे सामान्य हो गए। किंतु तब वे बहुत बड़े धोखेबाज बन गए, क्योंकि वे यह स्वीकार नहीं कर सकते हैं कि अब संपर्क खो चुका है। मैंने ऐसे कई लोग देखे हैं जिनके पास वास्तव में चमत्कारी शक्तियां थीं, लेकिन तब वे अभिमानी हो गए। तभी शक्ति खो गई और फिर वे सामान्य जादूगर बन गए, क्योंकि वे यह विचार स्वीकार नहीं कर सकते कि अब वे ऐसा नहीं कर सकते हैं। वे यह किया करते थे, ऐसा एक बार हो चुका है। यही तो हुआ है सत्य साईंबाबा के साथ वे संपर्क में आए थे। पहला काम जो उन्होंने किया था वह उनसे नहीं हुआ था, लेकिन अब सब कुछ वे ही कर रहे हैं। पहली बात तो बस घट गई थी, लेकिन फिर उन्हें चमत्कारों का नशा, विशिष्टता का अभिमान हो गया। अब जो कुछ भी वे कर रहे हैं वह मात्र धोखाधड़ी है, अब उन्हें अपनी प्रतिष्ठा कायम रखनी है। अब वे एक आम जादूगर से भी निम्नस्तरीय हैं, क्योंकि कम से कम एक आम जादूगर यह मानता तो है कि वह तरकीबें कर रहा है। किंतु यह तर्कयुक्त प्रतीत होता है। एक बार तुम कुछ कर सकते थे, और अब तुम उसे न कर सको, तब किया क्या जाए? इसके विकल्प में तुम कुछ और करते हो। तुम कुछ सीखना और कुछ करना आरंभ कर देते हो, किसी भी प्रकार से अपना वह स्तर यथावत रखना है, जो तुमने अपने चतुर्दिक निर्मित कर लिया है, अपनी छवि जो तुमने अपने चारों ओर बना रखी है।
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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