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________________ प्रेम पूरब की आत्मा है। प्रेम मनुष्य की आत्मा है। प्रेम परमात्मा की आत्मा है। यहां पर प्रेम ही एक मात्र समृद्धि है, एकमात्र प्रसन्नता है। अत: यदि तुम वस्तुओं से अत्यधिक आसक्त हो, तो तुम प्रेमी नहीं हो सकते। केवल अनासक्त मन ही स्वयं को उस आकाश की ओर उठा सकता है जिसे हम प्रेम कहते हैं। इसके बारे में काफी गलतफहमियां हैं। वे लोग जो संसार त्यागते और वैरागी बनते हैं लगभग उसी के साथ प्रेम-विहीन भी हो जाते हैं, तो कुछ न कुछ गड़बड़ है। क्योंकि प्रेम से ही इसका निर्णय होता है, यही इसका परीक्षण, इसकी कसौटी है। यदि संसार के प्रति तुम्हारा वैराग्य तुम्हें प्रेम-विहीन बना रहा है, तो इसका अर्थ है कि कुछ खटास उत्पन्न हुई है। तुम्हारा वैराग्य सत्य, .प्रमाणिक, सच्चा नहीं है, यह झूठा है। क्योंकि तुम प्रेम से भयभीत हो। तो यह प्रदर्शित करता है कि तुम संबंधित होने से डरते हो, इसलिए तुम उन' सभी परिस्थितियों से बचाव कर रहे हो जिनमें प्रेम पुष्पित हो सकता है क्योंकि गहरे में तुम घबड़ा गए हो कि यदि प्रेम पुष्पित हो गया तो तुम पुन: आसक्त हो जाओगे। यही कारण है कि तुम्हारे तथाकथित महात्मा प्रेम से इतना अधिक डरे हुए हैं। वे एक स्थान पर तीन दिन से अधिक नहीं ठहरेंगे। इतना भय किस लिए? क्योंकि यदि तुम एक स्थान पर और अधिक दिन रुके रहे, तो तुम लोगों के प्रति प्रेम अनुभव करने लगोगे। कोई प्रतिदिन तुम्हारे पांव दबाने आएगा और तुम उसके लिए प्रेम अनुभव करने लगोगे। कोई स्त्री प्रतिदिन तुम्हारे लिए भोजन लेकर आएगी और तुम उसके प्रति प्रेम अनुभव करने लगोगे। एक खास किस्म का लगाव, और पुन: आसक्त हो जाने का भय उठ खड़ा होगा, अत: इससे पूर्व कि तुम आसक्त हो जाओ वहां से चले जाओ। ये तथाकथित वैरागी लोग मात्र भयभीत लोग हैं। वे एक गहरे आतंक में जीते हैं। जीवन के वास्तविक तल को वे कभी स्पर्श नहीं कर सकते हैं, क्योंकि यह सदैव प्रेम दवारा संस्पर्शित होता है। स्मरण रहे, यदि तुम्हारा वस्तुओं से वैराग्य सच्चा है, समझ से आया है, जागरूकता से विकसित हुआ है, तो तुम और अधिक प्रेमपूर्ण हो जाओगे। क्योंकि वही ऊर्जा जो राग में संलग्न थी मुक्त हो जाएगी। यह जाएगी कहां? तुम्हारे पास तुम्हारे उपयोग हेतु अधिक मात्रा में ऊर्जा रहेगी। आसक्ति प्रेम नहीं है; यह अहंकार का-कज्जा करने का, अधिकार करने का, उपयोग करने का ढंग है। यह हिंसा है; यह प्रेम नहीं है। जब यह ऊर्जा मुक्त हो जाती है, अचानक तुम्हारे पास प्रेम करने के लिए ऊर्जा का अतिरेक उपलब्ध हो जाता है। जो सच में ही अनासक्त है वह प्रेम से आपूरित होगा, और उसके पास बांटने के लिए सदा ही और-और रहेगा, और उसे प्रेम के नये स्रोत मिलते चले जाएंगे। उसका स्रोत असीम है। 'इन शक्तियों से भी अनासक्त होने से,.......'
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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