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________________ बस करुणावश कहता हूं क्योंकि मैं देखता हूं कि बीमारी वहां है। और जब तक तुम इसे न जानो, जब तक इसका निदान न हो, तुम इससे छुटकारा कैसे पा सकते हो? यदि चिकित्सक तुम्हारी नब्ज पर हाथ रखता है और कहता है कि तुम्हें बुखार है और तुम उस डाक्टर पर छलांग लगा दो और लड़ना आरंभ करो। आप क्या कह रहे हैं? मुझे भला कैसे बुखार हो सकता है? नहीं, आप गलत है, मैं पूर्णत: स्वस्थ हूं। तो पहली बात यह है कि तुम चिकित्सक के पास गए ही क्यों थे? स्वास्थ्य का प्रमाणपत्र लाने भर को? तुम यहां हो, इसे याद रखो, तुम यहां अपनी बीमारियों के लिए पहचाने जाने के लिए और उनके न होने का प्रमाणपत्र पाने के लिए नहीं हो। तम यहां निदान, परीक्षण, रोग उन्मूलन के लिए आए हो, ताकि तुम्हारा यथार्थ स्वरूप उदित हो सके, खिल सके। लेकिन यदि तुम बचाव कर रहे हो तो बचाव करना तुम्हारे हाथ में है। यह मेरा कार्य नही, इसका बचाव करो। लेकिन तब तुम पीड़ित होओगे। फिर मेरे पास मत आना और मत कहना कि मैं पीडा में हूं मैं तनावग्रस्त हूं। संसार से भीतर की ओर गतिमान हो पाना बहुत कठिन है, क्योंकि अंदर तो तुमने रुग्णताएं और बीमारियां छुपा रखी हैं। वे तुम्हें बाहर जाने को बाध्य करती हैं। यह ध्यान हटाने का एक उपाय है। यही कारण है कि इतने अधिक सदगुरु तुम्हें सिखाते रहे हैं कि भीतर जाओ, स्वयं को जानो। लेकिन तुम वहां कभी नहीं जाते। तुम इसके बारे में बात करते हो, तुम इसके बारे में पढ़ते हो, तुम इस विचार की सराहना करते हो, लेकिन तुम भीतर कभी नहीं जाते। क्योंकि भीतर तुम्हारे पास केवल अंधकार और घाव और बीमारियां हैं। तुम उन चीजों को छिपाए हुए थे जो अच्छी नहीं हैं, तुम्हारे लिए | प्रदायक नहीं हैं। लेकिन तुम इसके विपरीत उन्हें नष्ट करने के स्थान पर उनकी सुरक्षा करते रहे हो। जब तुम द्वार खोलते हो...... और तुम्हें इतनी दुर्गंध, इतनी धूल, इतनी कुरूपता अनुभव होती है जैसे कि नरक खुल गया है। तुम तुरंत ही द्वार बंद कर देते हो और तुम सोचना आरंभ कर देते हो कि आखिर बात क्या है? बुद्ध, कृष्ण, जीसस वे सभी सिखाते रहे हैं कि भीतर जाओ और तुम परम आनंद, शाश्वत आनंद को उपलब्ध होगे, लेकिन तुम द्वार खोलते हो और तुम दुखस्वप्न में पहुंच जाते हो। यह दुखस्वप्न तुम्हारे दमनी से निर्मित हुआ है। सतह पर तुम सरल हो, गहरे में तुम बहुत जटिल हो। ऊपर से तो तुम्हारा चेहरा एक बहुत ही भोले व्यक्ति का है, गहराई में तुम बहुत कुरूप हो। इस दमनात्मकता के कारण तुम भीतर नहीं देख सकते, और तुम्हें खुद को लगातार दूसरी ओर मोड़ते रहना पड़ता है-रेडियो सुनना, टीवी. देखना, अखबार पढ़ना, दोस्तों से मिलने जाना। जब तक कि तुम सो न जाओ तब तक बस समय बरबाद करते रहना। जिस क्षण तुम सोकर उठते हो, फिर से तुम दौड़ना आरंभ कर देते हो। तुम किससे भाग रहे हो? तुम अपने आप से भाग रहे हो।
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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