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________________ होगी । पुनरुक्ति मत करो बल्कि समझने की कोशिश करो और और जीवंत, प्रामाणिक और उत्तरदायी बनो। यदि भटकने की संभावना भी हो तो भटक जाओ। क्योंकि अगर तुम गलती करने सेइरइर बहुत ज्यादा डरे हुए हो तो विकसित होने का कोई उपाय नहीं है। गलतियां अच्छी बात है। गलतियां की जानी चाहिए। वही गलती दुबारा कभी न करो। लेकिन गलती करने से कभी डरो मत। वे लोग जो गलतियां करने से बहुत डरे हुए हैं कभी विकसित नहीं होते। वे आगे बढ़ने से भयभीत हैं, अतः अपने स्थान पर जमे रहते हैं। वे जीवित नहीं हैं। — मन का विकास तभी होता है जब तुम परिस्थितियों का सामना, मुकाबला, स्वयं के भरोसे करते हो। उन्हें सुलझाने के लिए तुम अपनी ऊर्जा प्रयोग में लाते हो सदा राय मत मांगते रहो अपने जीवन की बागडोर अपने हाथ में थामो जब मैं कहता हैं, अपने अनुसार जीयो तो मेरा यही अभिप्राय है। तुम मुश्किल में पड़ोगे, दूसरों का अनुगमन करना सुरक्षित है, समाज के पीछे चलना, बंधी - बधाई लीक पर चलना, परंपरा का शास्त्रों का अनुकरण करना, सुविधाजनक है। यह बहुत आसान है क्योंकि हर कोई अनुकरण कर रहा है - तुम्हें तो बस झुंड का मुर्दा हिस्सा भर बनना है, तुम्हें तो भीड़ जहां जा रही है उसके साथ जाना है, इसमें तुम्हारी कोई जिम्मेवारी नहीं है लेकिन तुम्हारा मनस-शरीर, तुम्हारा मनोमयकोष, इससे अत्यधिक पीड़ित होगा, इसका विकास नहीं होगा। तुम्हारे पास अपना निजी मन नहीं होगा, और तुम बहुत कुछ बहुत सुंदर और कुछ ऐसे से चूक जाओगे जो उच्चतर विकास के लिए सेतु है। अतः सदा याद रखो, जो कुछ भी मैं तुमसे कहता हूं तुम इसे दो ढंग से ग्रहण कर सकते हो। तुम इसे मेरी प्रमाणिकता मान कर अपना सकते हो।' ओशो ने ऐसा कहा है, अतः सत्य ही होना चाहिए।' तब तुम पीड़ा उठाओगे, तब तुम्हारा विकास नहीं होगा। जो कुछ भी मैं कहता हूं उसे सुनो, समझने की कोशिश करो, इसे अपने जीवन में उतारो, देखो यह कैसे कार्य करता है, और फिर अपने निजी निष्कर्षों पर पहुंचो। वे समान हो सकते हैं, वे समान नहीं हो सकते हैं। वे पूर्णत: एक से कभी नहीं हो सकते। क्योंकि तुम्हारा एक अलग व्यक्तित्व, एक अनूठा अस्तित्व है जो कुछ भी मैं कह रहा हूं मेरा निजी है। बड़े गहरे ढंग से इसकी जड़ें मेरे भीतर उतरी हुई हैं। तुम उन्हीं निष्कर्षो तक पहुंच सकते हो, परंतु वे हूबहू एक से नहीं होंगे। अतः मेरे निष्कर्ष तुम्हारे निष्कर्ष नहीं बना दिए जाने चाहिए। तुम मुझे समझने का प्रयास करो, तुम सीखने की कोशिश करो, लेकिन तुम्हें मुझसे जानकारी एकत्रित नहीं करना चाहिए, तुम्हें मुझसे निष्कर्ष एकत्रित नहीं करना चाहिए। तब तुम्हारा मनस शरीर विकसित होगा । लेकिन लोग त्वरित विधि अपनाते हैं। वे कहते हैं, यदि आपने जान लिया 1 बात खतम। हमें प्रयास और प्रयोग करने की जरूरत ही क्या है? हम आपमें विश्वास करेंगे।' विश्वासी का कोई मनोमय कोष नहीं होता। उसके पास एक छद्य मनोमय कोष है, जो उसके अस्तित्व से नहीं आया है वरन बाहर से जबरन आरोपित कर दिया गया है।
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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