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________________ भगवान कंप्यूटर ने आपके बहुत से शब्दों को इकट्ठा कर लिया है। लेकिन आपकी मुस्कुराहट- यह उसकी समझ के बिलकुल बाहर है। यह आधा प्रश्न है। बाकी का आधा प्रश्न मैं बाद में पढूंगा। पहले मैं इस आधे प्रश्न का उत्तर दूंगा। फ्रांस के भूतपूर्व राष्ट्रपति रेन कोटि एक कला प्रदर्शनी देखने के लिए गए। वहा पर उन से पूछा गया कि वे इन चित्रों को समझ पाए या नहीं। उन्होंने एक ठंडी सांस भरते हुए कहा, 'जब मेरी पूरी जिंदगी बीत गई, तब कहीं मैं यह समझ पाया कि हर बात को समझना कोई जरूरी नहीं है।' अब आगे का आधा प्रश्न: क्या कभी आप हमारे साथ केवल मौन बैठेगे और मुस्कुराएगें? तुम उसे देख नहीं सकोगे। जिस मुस्कान को तुम देख सकते हो, वह मेरी मुस्कान नहीं, और जो मुस्कान मेरी है, तुम उसे देख न सकोगे। जिस मौन को तुम समझ सकते हो, वह मेरा मौन नहीं; और जो मेरा मौन है, तुम उसे समझ नहीं सकोगे, क्योंकि तुम केवल उसे ही समझ सकते हो जिसका स्वाद तुम्हारे पास पहले से है। मैं मुस्करा भर सकता हूं -सच तो यह है मैं हर क्षण मुस्करा ही रहा हूं –लेकिन अगर वह मेरी मुस्कुराहट है तो तुम उसे देख, समझ नहीं सकोगे। जब मैं तुम्हारे हिसाब से मुस्कुराता हूं, तब तुम समझते हो; लेकिन तब फिर समझने का कोई सार नहीं। मैं हमेशा, हर पल, मौन ही हूं। जब मैं बोल भी रहा होता हूं तो मौन ही होता हूं क्योंकि यह बोलना मेरे मौन को, मेरी शांति को जरा भी भंग नहीं कर पाता। अगर बोलने के द्वारा मौन भंग होता हो, तो फिर उस मौन का कोई मूल्य नहीं। मेरा मौन विशाल है, विराट है। उसमें शब्द भी समा सकते हैं, उसमें बोलना भी समा सकता है। मेरा मौन शब्दों से खंडित नहीं होता है।
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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