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________________ आकांक्षा को भी देना होता है। उसने अपना कार्य कर दिया। उसने तुम्हारे जीवन में एक गति दे दी, वह तुम्हें अस्तित्व के दवार तक ले आई, अब उसे भी गिरा देना है। एक बार जब वह भी गिर जाती है, तो फिर तुम भी नहीं बचते..... केवल परमात्मा ही होता है। यही है निर्बीज समाधि। आज इतना ही। प्रवचन 64 - बीज हो जाओ प्रश्नसारः 1-एक बार पतंजलि और लाओत्सु एक नदी के किनारे पहुंचे। 2-पतंजलि के ध्यान और झाझेन में क्या अंतर है? 3-जब मैं अपने को अस्तित्व के हाथों में छोड़ दूंगा, तो क्या अस्तित्व मुझे सम्हाल लेगा? 4-अभी कुछ दिनों से मुझे ऐसा महसूस हो रहा है कि मैं उड़ सकता हूं? क्या यह सिर्फ एक पागलपन 5-आपने मुझे से स्वयंरूप हो जाने को कहा। लेकिन अगर मैं स्वयं को ही नहीं जानता हं, तो मैं कैसे स्वयंरूप हो सकता है? 6-मैं देखता हैं कि आप हमें किसी भी तरह से जगाने का प्रयास कर रहे है। लेकिन फिर भी मैं समझ नहीं पा रहा हूं, आपकी देशना को मैं कैसे समझू?
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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