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________________ अभी कोई दस वर्ष पहले जापान में शाही रत्नों की सूची बनाई गई। पहले वह शाही खजाना सोशुन नामक एक सुरक्षित इमारत में रखा हुआ था। नौ सौ वर्ष से हीरे जवाहरात वहीं सोशन नामक स्थान पर सुरक्षित रखे हुए थे। जब एम्बर नामक मोतियों की माला का परीक्षण किया गया, तो माला के बीच में एक मोती दूसरे मोतियों से अलग मालूम हुआ। पहले तो सदियों सदियों से मनकों पर जो धूल एकत्रित हो गई थी, उसे साफ किया गया और फिर बीच वाले मनके का परीक्षण बहुत उत्सुकता के साथ किया गया। जो लोग खजाने की खोज कर रहे थे वह उन्हें मिल गया। वह विशिष्ट मनका शेष दूसरे मनकों जैसा न था। वह मनका बहुत ही उत्तम क्वालिटी का था । कोई नौ सौ वर्षों तक तो वह विशेष मनका एम्बर ही माना जाता रहा, लेकिन अब पूरी बात बदल गई थी। हम कितनी ही देर भ्रांति में जीते रहें, इससे कुछ भेद नहीं पड़ता है। लेकिन आत्म-निरीक्षण हमारे सच्चे और शांत स्वभाव को प्रकट कर ही देता है। एक बार जो तुम हो जब उस सत्य की झलक मिल जाती है, तब सभी झूठे तादात्म्य अचानक तिरोहित हो जाते हैं। अब उन तादात्म्यों से तुम स्वयं को और अधिक धोखा नहीं दे सकते हो। यह निरोध परिणाम तुम्हें तुम्हारे सच्चे स्वभाव की पहली झलक दे देता है। वह धूल की पर्तों के नीचे जो चमकता हुआ सच्चा मोती छिपा है, उसकी प्रथम झलक दे देता है। वे धूल की पर्तें और कुछ भी नहीं वे पर्तें विचारों की, संस्कारों की कल्पनाओं की, स्वप्नों की इच्छाओं की पर्तें ही हैं बस वहां पर विचार ही विचार होते हैं। अगर एक बार भी उस सत्य की झलक मिल जाए, तो फिर तुम पहले जैसे नहीं रह सकते हो, फिर तो तुम परिवर्तित हो ही चुके। 7 इसे ही मैं रूपांतरण कहता हूं। जब कोई हिंदू ईसाई बनता है या जब कोई ईसाई हिंदू बनता है, मेरी दृष्टि में वह रूपांतरण नहीं है। वह तो ऐसे ही है जैसे एक कैद से दूसरी कैद की ओर सरकना । रूपांतरण तो तब घटित होता है जब विचार से निर्विचार तक मन से अ - मन तक पहुंचना हो है रूपांतरण तो तब होता है जब दो विचारों के बीच का अंतराल देखते देखते और अकस्मात बिजली की कौंध की भांति सत्य उदघटित हो जाता है। और फिर से अंधकार छा जाता है, लेकिन उस एक झलक मात्र से तुम फिर वही व्यक्ति नहीं रह जाते हो। तुमने उस सत्य के दर्शन कर लिए हैं, जिसे अब भूलना संभव नहीं है। इसी कारण अब तुम उसकी खोज बार-बार करोगे । आने वाला सूत्र यही कह रहा है. 'यह प्रवाह पुनरावृत्त अनुभूतियों – संवेदनाओं द्वारा शांत हो जाता है।' अगर विचारों के बीच का अंतराल गहराने लगे, तो धीरे - धीरे, मन बिदा होने लगता है। जब विचारों का प्रवाह शांत हो जाता है, निर्विचार की अवस्था सहज और स्वाभाविक हो जाती है, जब निर्विचार होना तुम्हारा सहजस्फूर्त स्वभाव हो जाता है तब उस निर्विचार की अवस्था से तुम अपने
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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