SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रज्ञावान, संयमवान व्यक्ति के साथ होने का, उसके सत्संग में रहने का, उसके साथ उठने –बैठने का प्रयास करते हैं -वह फूल बाहर से उधार लिया हुआ नहीं होता है। वह तो स्वयं के अंतर्तम का खिलना है। ध्यान रहे, पतंजलि के संयम की अवधारणा कोई बाहर से संयम को थोप लेने की अवधारणा नहीं है। पतंजलि की अवधारणा तुम्हारे भीतर जो खिलने की संभावना छिपी हुई है उसे अभिव्यक्त होने में सहयोग देने की है। बीज तुम्हारे भीतर विद्यमान है, बीज को केवल सम्यक भूमि, मिट्टी और खाद –पानी की आवश्यकता है। बीज को तुम्हारे थोड़े ध्यान की, प्रेम से उसके साज -सम्हाल की आवश्यकता है, और जब ठीक समय आता है तो बीज टूटकर फूल बन जाता है। और उस बीज में जो सुवास छिपी हुई थी वह हवाओं में बिखर जाती है, और हवाएं उस सुवास को सभी दिशाओं में ले जाती हैं। संयमवान व्यक्ति स्वयं को छिपा नहीं सकता। वह स्वयं को छिपाने की कोशिश करता है, लेकिन वह स्वयं को छिपा नहीं सकता है, क्योंकि हवाओं में उसकी सुवास समाई रहती है। भले ही वह पहाड़ों में चला जाए, या गुफा में जाकर बैठ जाए, लेकिन उसकी सुवास लोगों तक पहुंच जाएगी, और वहा पर भी लोग उसके पास. आने लगेंगे। जो लोग साधना के पथ पर चल रहे हैं, किसी भी तरह से, किन्हीं अनजान मार्गों से, किसी न किसी तरह से खोज ही लेंगे। उसको कोई जरूरत नहीं उन्हें खोजने की, वे ही उसे खोज लेंगे। क्या तुम्हें स्वयं के साथ भी कभी ऐसा अनुभव हुआ है? क्योंकि तब इन सूत्रों को समझना तुम्हारे लिए आसान होगा। तुम सच में ही किसी से प्रेम करते हो, और किसी के साथ प्रेम का दिखावा करते हो, क्या तुमने इन दोनों में फर्क देखा है? अगर कोई दोस्त तुम्हारे घर आ जाए तो तुम हृदय से उसका स्वागत करते हो। उसके आने से तुम खुशी से झूम उठते हो, तुम पूरे हृदय से उसका स्वागत करते हो। और फिर कोई दूसरा मेहमान आ जाए, तो तुम उसका स्वागत इसलिए करते हो, क्योंकि घर आए मेहमान का स्वागत-सत्कार करना चाहिए। क्या तुमने इन दोनों के भेद पर ध्यान दिया है? जब तुम सच में ही किसी का हृदय से स्वागत करते हो, तो तुम एक प्रेम के प्रवाह में होते हो तुम्हारे उस स्वागत में एक तरह की समग्रता होती है। और जब तम किसी मेहमान का स्वागत नहीं करना चाहते हो, केवल शिष्टाचार वश, और मजबूरी में तुम्हें ऐसा करना पड़ता है, तो उसमें कोई गरमाहट नहीं होती है। अगर मेहमान थोड़ा भी संवेदनशील होगा तो वह इस बात को तुरंत समझ जाएगा और वापस चला जाएगा। घर के अंदर प्रवेश ही नहीं करेगा। अगर वह सच में ही संवेदनशील है, तो वह तुम्हारे व्यवहार से तुरंत समझ जाएगा। तब तुम अगर हाथ मिलाने के लिए हाथ भी आगे
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy