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________________ लेकिन धीरे-धीरे जब क्रोध को दबाया जाता है, तो क्रोध रक्त-मांस-मज्जा की तरह शरीर का अंग बन जाता है। भीतर ही भीतर क्रोध निरंतर उबलता रहता है। और जब यह जीवन का अंग बन जाता है, तो धीरे – धीरे श्वास भी उससे प्रभावित होने लगती है। फिर जो कुछ भी आप करते हैं, क्रोध में ही करते हैं। तब अगर प्रेम भी करते हैं तो उस प्रेम में भी क्रोध छिपा होता है। तब प्रेम में भी एक तरह की आक्रामकता और हिंसा ही होती है। आपके जाने-अनजाने, चाहे आप ऐसा नहीं भी करना चाहते हों, फिर भी क्रोध मौजूद रहता है। और तब वह जीवन की राह में एक बड़ी चट्टान बन जाता प्रारंभ में तो बाहर से किसी चीज को आरोपित करना बहुत ही आसान होता है, लेकिन धीरे – धीरे बाद में यही बात स्वयं के लिए घातक और हानिकारक सिदध होने लगती है। और लोगों को यह और आसान लगता है, क्योंकि इन सब बातों को सिखाने के लिए समाज में जानकार लोग मौजूद हैं 1 एक बच्चा जब जन्म लेता है, तो माता-पिता जानकार व्यक्ति की तरह उसे बहुत सी बातें सिखाने लगते हैं। जबकि वे जानकार हैं नहीं। क्योंकि उनसे स्वयं की समस्याएं तो सुलझती नहीं हैं, और बच्चों को समझाए चले जाते हैं। अगर माता -पिता सच में ही अपने बच्चे से प्रेम करते हैं, तो वे स्वयं को उस पर आरोपित न करेंगे। लेकिन प्रेम करता ही कौन है? किसी को पता ही नहीं है कि प्रेम क्या होता है। वे अपने उन्हीं पुराने तौर -तरीकों को, जिसमें कि वे स्वयं फंसे होते हैं, बच्चों पर जबर्दस्ती आरोपित करते रहते हैं। उन्हें इस बात का होश भी नहीं कि वे क्या कर रहे हैं। वे स्वयं उसी जाल में फंसे हैं और इस कारण उनका पूरा जीवन दुखी रहा है, और अब वे वही ढर्रा –ढांचा अपने बच्चों को दे रहे हैं। बच्चे निर्दोष होते हैं, उन्हें क्या सही है और क्या गलत है, इस बात का कुछ बोध होता नहीं है, वे भी उसी के शिकार हो जाते हैं। और ये तथाकथित जानकार, जो कि जानकार होते नहीं हैं क्योंकि वे स्वयं कुछ भी जानते नहीं हैं, वयं की कोई समस्या सलझती नहीं है और चंकि उन्होंने बच्चे को जन्म दिया है, इसलिए वे उस फूल जैसे सुकोमल, नाजुक बच्चे को उसी पुराने सड़े –गले ढांचे में डालना अपना अधिकार समझ बैठते हैं। और चूंकि बच्चा बेसहारा होता है, तो उसे उनका अनुसरण करना पड़ता है। और जब तक वह थोड़ा होश सम्हालता है, थोड़ा बड़ा और समझदार होता है, तब तक वह उनके बने जाल में फंस चुका होता है। उसके बाद फिर स्कूल हैं, विश्वविदयालय हैं, समाज में कई तरह के विशेषज्ञ और जानकार हैं, ओर फिर स्कूल, विश्वविद्यालय और हजार तरह के संस्कार, समाज के जानकार लोग-और सभी यह समझ रहे हैं कि वे जानते हैं। लेकिन कोई भी जानता हो, ऐसा मालूम नहीं पड़ता है।
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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