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________________ दस्तक देती रहेगी। वह प्यास तुम्हें और कुछ नहीं करने देगी, इसीलिए तुम उस प्यास को अपने अचेतन के अंधकार में धकेल देते हो। पतंजलि के योग-सूत्रों पर यह जो प्रवचन माला चल रही है, वह इसलिए ही है कि तुम उस उपेक्षित प्यास को अपनी चेतना के केंद्र में ले आओ, और यह कोई वास्तविक कार्य नहीं है, यह तो- केवल कार्य का प्रारंभ है। वास्तविक काम तो तब शुरू होता है जब तुम प्यास को पहचान लेते हो, उस प्यास को स्वीकार कर लेते हो; और तुम परिवर्तित होने को, रूपांतरित होने को, नए होने को तैयार हो जाते हो-जब तुम इस अनंत यात्रा पर साहस पूर्वक जाने को तैयार हो जाते हो, एक ऐसी यात्रा जो अज्ञात और अज्ञेय है। यह प्रवचन तो बस तुम्हारे भीतर प्यास और अभीप्सा को जगाने के लिए हैं, ताकि तुम उस यात्रा पर जा सको। यह योग-सूत्र तो केवल तुम्हारे भीतर प्यास जगाने के लिए हैं, तुम्हारे लिए एपीटाइजर की तरह हैं। असली बात तो लिखी ही नहीं जा सकती, कही ही नहीं जा सकती, लेकिन फिर भी ऐसा कुछ लिखा और कहा जा सकता है जो तुम्हें प्रामाणिक बात के अधिक निकट ले आए। मैं तो उन कुंजियों के हस्तांतरण के लिए तैयार हूं –लेकिन तुम्हें अपनी चेतना को विशेष तल तक लाना होगा, तुम्हें अपनी समझ के एक विशेष तल तक लौना होगा। केवल तभी तुम उन कुंजियों को समझ सकोगे। मैंने सुना है: दो भिखारी जो नशे में धुत्त थे, घास पर लेटे हुए थे। सूर्य चमक रहा था, पास ही कल-कल करती नदी चह रही थी, सभी कुछ शांत और सुखद था। पहले भिखारी ने अपना विचार व्यक्त किया, 'तुम्हें मालूम है, इस समय तो मैं किसी के भी साथ अपनी जगह नहीं बदलूंगा, चाहे उस आदमी के पास एक लाख रुपए ही क्यों न हों।' उसके साथी ने पूछा, 'पांच लाख हों तो।' ‘पांच लाख हों, तो भी नहीं।' उसके मित्र ने बोलते हुए कहा, 'अच्छा, दस लाख के बारे में क्या खयाल है?' पहला भिखारी उठकर बैठ गया और बोला, 'यह बात अलग है। अब तो तुम उस रकम की बात कर रहे हो जिसे सही मायने में रुपया कहा जा सकता है?' ये प्रवचन तो तुम्हें झलक दिखाने जैसे ही हैं। ये तुम्हें असली रुपए देने जैसे नहीं हैं, बल्कि ये तो तुम्हें असली रुपए की झलक दिखाने जैसे हैं। जिससे तुम्हारे भीतर की जन्मों -जन्मों से दबाई हुई प्यास, अभीप्सा, अतृप्ति फिर से जाग उठे, वह फिर से तुम्हें आंदोलित कर दे और वह अतृप्ति तुम्हारे भीतर लपट बन जाए; तब तुम मेरे निकट आ सकोगे।
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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