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________________ वह बोला,' ओह, क्या बताऊं आपको, वे लोग जो कभी कछ नहीं करते, जिनके माता -पिता ने कभी कुछ नहीं किया, दादा-परदादा ने कभी कुछ नहीं किया-जो परिवार हमेशा-हमेशा से सुख-सुविधाओं में, ऐशो-आराम में रहते आए हैं, उनको अभिजात वर्ग कहते हैं।' अमरीकी बोला,' ओं हां! हमारे यहां वैसे लोग हैं, लेकिन हम उन्हें आवारा या घुमक्कड़ कहते हैं।' लेकिन जब तुम किसी को अभिजात कहते हो, तो यह प्रतिष्ठापूर्ण मालूम होता है। और जब तुम किसी को होबो कहकर बुलाते हो, तो अचानक एवरेस्ट के शिखर से व्यक्ति एक गहरी खाई में गिर जाता है। लेकिन अभिजात लोग आवारा हैं, और आवारा लोग स्वयं को अभिजात व्यक्तियों जैसा समझते हैं। मैंने सुना है, दो घुमक्कड़ आराम से चांदनी रात में बैठे हुए एक-दूसरे से बातचीत कर रहे थे। उनमें से एक ने पूछा, 'तुम अपनी जिंदगी में क्या बनना चाहते हो?' दूसरा कहने लगा, 'मैं तो प्रधानमंत्री बनना चाहंगा।' पहले ने कहा, 'क्या? तुम्हारे जीवन में कोई और महत्वाकांक्षा नहीं है क्या?' एक घुमक्कड़ सोच रहा है प्रधानमंत्री बनने की। घुमक्कड़ के अपने जीवन –मूल्य होते हैं। अगर तुम अपने पिछले संदर्भो को ध्यान से देखो, तो वे हैं क्या? भाषा के खेल हैं। कोई कहता है कि वह ब्राह्मण है। क्योंकि समाज चार वर्ण -व्यवस्थाओं को मानता है। भारत में ब्राह्मण सबसे ऊंची जाति है, और शूद्र सबसे नीचे की जाति है। अब इस तरह की जाति -व्यवस्था संसार में अन्यत्र कहीं भी नहीं है, यह केवल भारत में ही है। निस्संदेह, यह वर्ण -व्यवस्था काल्पनिक है। अगर व्यक्ति स्वयं ही न कहे कि वह ब्राह्मण है, तो पता लगाना मुश्किल है कि कौन ब्राह्मण है। सभी का खून एक जैसा है, सभी की हड्डियां एक जैसी हैं -खून, हड्डी के परीक्षण से, या किसी एक्स-रे से नहीं मालूम पड़ता कि कौन ब्राह्मण है और कौन शूद्र है। लेकिन भारत में यह खेल बहुत समय से चलता चला आ रहा है। इस कारण से भारत के मन में इसकी जड़ें बहुत गहरी चली गई हैं। जब कोई कहता है कि वह ब्राह्मण है, तो जरा उसकी आंखों में झांककर देखना, उसकी आंखों में, उसके हाव-भाव को देखना-उसके हाव-भाव में अहंकार फूट रहा होता है। जब कोई कहता है कि वह शूद्र है, तो जरा उसे ध्यानपूर्वक देखना। वह शब्द ही अपमानित है, वह शब्द ही उसे अपराध भाव से भर देता है। दोनों ही इंसान हैं, लेकिन समाज द्वारा स्वीकृत लेबल चिपका देने से ही उनकी मानवता नष्ट हो जाती है।
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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