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________________ दो भाइयों की मृत्यु एक साथ, एक ही समय में हुई। और दोनों साथ-साथ ही पर्ली गेट पहुंच गए। वहां पर सेंट पीटर ने उनका इंटरव्यू लिया। उसने पहले भाई से पूछा, 'क्या पृथ्वी पर आप एक भले इंसान रहे हैं? उसने जवाब दिया, 'हा, बिलकुल संत शिरोमणि, मैं ईमानदार, शांत, संयमी, और परिश्रमी रहा और स्त्रियों को लेकर मेरे साथ कभी कोई झंझट नहीं हुई।' सेंट पीटर ने कहा, 'अच्छे बालक, और उसे एक चमचमाती हई सफेद रोल्स रायस दे दी। अच्छा बने रहने के लिए यह तुम्हारा पुरस्कार है।' फिर उसने दूसरे भाई से पूछा, और तुम्हारा क्या कहना है अपने बारे में?' पहले उसने एक लंबी श्वास छोड़ी, 'मैं तो अपने भाई से हमेशा अलग तरह का रहा है। मैं चालाक,धूर्त, शराबी और निकम्मा था-और स्त्रियों के संबंध में तो एकदम शैतान था।' सेंट पीटर ने कहा,' ओह अच्छा, लड़के तो लड़के ही रहेंगे। और कम से कम तुम यह बात स्वीकार तो कग्ते हो। तब तुम इसे ले सकते हो। और उसने उसके हाथ में मिनी -मायनर की चाबियां पकड़ा दीं।' वे दोनों भाई जैसे ही अपनी-अपनी कारों में बैठने ही वाले थे कि उनमें से जो शरारती था वह खूब जोर-जोर से हंसने लगा। तो जो दूसरा भाई था उसने पूछा, 'तो इस में हंसने की क्या बात है?' वह बोला, 'मैंने अभी-अभी बड़े धर्माध्यक्ष को बाइक च वा।' तुम्हारा पूरा का पूरा आनंद हमेशा तुलना में ही होता है। तुलना तुम्हें इस बात की अनुभूति देती है कि तुम कहा हो-उस आदमी से पीछे हो जिसके पास रोल्स रायस है या उस आदमी से आगे हो जिसके पास बोइक है। ऐसी परिस्थिति में यह मालूम हो जाता है कि तुम कहां हो, कहा पर खड़े हुए हो। नक्शे पर तो तुम स्वयं को बता सकते हो, लेकिन स्वयं को जानने के लिए कि तुम कहा हो यह कोई ठीक ढंग नहीं है। क्योंकि नक्शे पर तो तुम कहीं हो ही नहीं, नक्शा एक भ्रांति है। तुम नक्शे के कहीं पार हो। न तो कोई तुम से आगे है और न ही कोई तुम से पीछे है। तुम अकेले हो, नितांत अकेले। तुम अपने आप में बेजोड़ हो, अनूठे हो। और दूसरा कोई नहीं है जिससे कि तुलना करनी है। इसी कारण से लोग स्वयं के भीतर जाने से भयभीत होते हैं। क्योंकि तब वे अपने ही एकांत में प्रवेश करते हैं, जहां सभी मार्ग और सारी संभावनाएं समाप्त हो जाती हैं, मिट जाती हैं। सभी तरह के काल्पनिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक नक्शे -सब तिरोहित हो जाते हैं। तब व्यक्ति अपने अस्तित्व के परम एकांत में पहुंच जाता है और उसे मालूम नहीं होता कि वह कहां है।
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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