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________________ 10. आपके आश्रम की व्यवस्था तीन धूर्तो के हाथ में है, जो सुंदर और सरल स्त्रियों के भेष में हैं। पहला प्रश्न: मैं स्वयं को खोया- खोया महसूस करता हूं। अपने पुराने जीवन में वापस लौटने के लिए कोई मार्ग नहीं बचा है- सभी सेतु टूट चुके है और मुझे आगे भी कोई मार्ग दिखायी नहीं पड़ रहा है। काई मार्ग है भी नहीं। मार्ग केवल मन का एक भ्रम है। मन लक्ष्यों तक पहुंचने के, आकांक्षाओं की पूर्ति के सपने ही देखता रहता है। मार्ग तो आकांक्षा करने वाले मन की छाया है। पहले तुम किसी चीज की आकांक्षा करते हो। निस्संदेह वह आकांक्षा केवल भविष्य में होती है और भविष्य का अभी कुछ पता नहीं है। जो है ही नहीं उसे, जो है उससे कैसे जोड़ा जा सकता है? तो तुम उसमें से कोई स्ता बना लेते हो। यह एक कल्पना ही होती है, एक भ्रम ही होता है। लेकिन उस मार्ग के चक्कर में तुम उससे जड़ जाते हो, जो नहीं है और इस तरह से तम्हारी यात्रा की शुरुआत हो जाती है। सच तो यह है तुम स्वयं को ही धोखा दे रहे होते हां, स्वयं के साथ एक खेल खेल रहे होते हो। कहीं कोई मार्ग नहीं है, इसलिए मार्ग की कोई जरूरत नहीं है। तुम पहले से ही वहा पर विद्यमान हो। वह कुछ ऐसा नहीं है जिसे उपलब्ध करना. है, वह मिला ही हुआ है। और अगर गहरे से देखा जाए तो धर्म कोई मार्ग नहीं है, बल्कि केवल एक बोध है, एक अनुभूति है, सत्य का रहस्योदघाटन है-इस बात का बोध कि तुम पहले से ही वहां पर हो। तुम्हारी अभीप्सा, आकांक्षाएं, इच्छाएं और वासनाएं तुम्हें तुम्हारे अस्तित्व की वास्तविकता को नहीं देखने देती। इसलिए अच्छा हुआ कि पुराने सेतु टूट गए और कहीं कोई मार्ग दिखायी नहीं पड़ रहा है। आगे कोई मार्ग है भी नहीं। यही तो मैं तुम्हारे साथ करना चाहता हूं। मैं तुमसे तुम्हारे सारे मार्ग छीन लेना चाहता हूं। जब तुम्हारे पास कोई मार्ग न बचेगा, और तुम्हें लगेगा कि अब कहां जाएं तब तुम भीतर जाओगे। अगर तुम्हारे सभी मार्ग-स्वयं से भागने की सभी संभावनाएं समाप्त हो जाएं, या तुम से छीन ली जाएं तो फिर तुम क्या करोगे? तब तुम स्वयं पर लौट आओगे।
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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