SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 48
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 'क्या किसी पुस्तक से सीखा है? या किसी शिक्षक से इस बारे में कुछ पूछा था? या इस बारे में किसी व्यक्ति से कुछ पूछा था?' वे कहने लगे, 'आप कैसी बातें कर रहे हैं? मैं तो अपने पत्नी –बच्चों के आने का भी इंतजार न कर सका, और मेरी समझ में ही नहीं आ रहा था कि लोग क्यों चिल्ला रहे हैं। बाद में, जब मैं जमीन पर गिर गया, तब मेरी समझ में आया कि वे लोग सीढ़ी लेने के लिए जा रहे थे।' जब घर में आग लगी हो, तो तुम तुरंत छलांग लगा देते हो। तुम यह नहीं पूछते कि 'कैसे' छलांग लगाएं। और जब मैं तुमसे कहता हूं कि तुम्हारे घर में आग लगी है, तो तम तरंत पछने लगते हो कि 'इसके बाहर छलांग कैसे लगाएं?' नहीं, तुम बात को समझे ही नहीं। तुम्हें अभी भी नहीं लगता कि तुम्हारे घर में आग लगी है। मैं कहता हूं, इसलिए मेरे कहने के कारण तुम्हारे मन में एक विचार उठता है कि 'इसके बाहर कैसे छलांग लगाएं?' अगर सच में ही तुम्हारे घर में आग लगी हो तो भला मैं कितना ही चिल्लाऊं कि मैं सीडी लेने जा रहा हूं। ठहरो! तो भी तुम प्रतीक्षा न करोगे, तुम छलांग लगा ही दोगे। चाहे फिर पांव ही क्यों न टूट जाएं। लेकिन तुम तो बड़े ही आराम से, बिना किसी फिकर के पूछ लेते हो कि 'समर्पण कैसे करूं?' कहीं कोई 'कैसे नहीं है। केवल उस पीड़ा को देखना और समझना है जिसे अहंकार निर्मित करता है। अगर तुम उस पीड़ा को अनुभव कर सको तो तुम अहंकार के बाहर आ जाओगे। 'और मेरे हृदय में पीड़ा हो रही है।' ऐसा तो होगा ही। अहंकार के साथ तो पीड़ा होगी ही। और तुम पूछते हो, '. प्रेम का द्वार कहां है?' अहंकार के बाहर आ जाओ। प्रेम का द्वार मौजूद ही है। अहंकार को छोड़ो और हृदय का द्वार मिल जाता है। अहंकार ही प्रेम के मार्ग में रुकावट बन रहा है। अहंकार ही ध्यान में अवरोध पैदा करता है, अहंकार ही प्रार्थना करने से रोकता है, अहंकार ही परमात्मा के मार्ग में रुकावट है, लेकिन फिर भी तम अहंकार की ही सुनते चले जाते हो। फिर जैसी तुम्हारी मर्जी। ध्यान रहे, अहंकार का चुनाव तुम्हारा चुनाव है। अगर तुमने अहंकार को चुना है, तो ठीक। फिर 'कैसे' की बात ही मत उठाना। और अगर तुम अहंकार का चुनाव नहीं करते, तो फिर 'कैसे ' का सवाल ही नहीं उठता है। चौथा प्रश्न:
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy