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________________ और ठीक ऐसा ही संप्रेषण के साथ भी होता है। जिन लोगों को संप्रेषण करना कठिन होता है –और बहुत से लोग हैं जो इसी कठिनाई में हैं कि दूसरे व्यक्ति के साथ कैसे संबंधित हों, दूसरे के साथ कैसे कम्यूनिकेट करें, कैसे बातचीत करें, कैसे प्रेम करें, कैसे मैत्री बनाएं कैसे दूसरे के सामने खुल सकें, बंद न रहें-उन सभी की उदान को लेकर ही कोई न कोई कठिनाई है। वे नहीं जानते कि इस प्राण ऊर्जा का उपयोग कैसे करना है, जो कि व्यक्ति को प्रवाहमान बनाती है और ऊर्जा को खोल देती है और तब आसानी से दूसरे के साथ संप्रेषण हो सकता है, दूसरे तक पहुंचना हो सकता है और तब फिर कहीं कोई अवरोध नहीं रहता। और पांचवीं है व्यान, समन्वय और संघटन। पांचवीं व्यक्ति को संघटित रखतो है। जब पांचवीं शरीर को छोड़ देती है, तो व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। तब शरीर विघटित होना शुरू हो जाता है। अगर पांचवीं मौजूद रहती है, तो चाहे पूरी की पूरी श्वास प्रक्रिया क्यों न रुक जाए, व्यक्ति जीवित रहेगा। यही तो योगी कर रहे हैं। जब योगी जनता के सामने प्रदर्शन करके यह दिखाते हैं कि वे अपनी हृदयगति को रोक सकते हैं, तो वे पहले के चार प्राणों को रोक देते हैं -पहले चार प्राणों को -वे पांचवें पर ठहर जाते हैं। लेकिन पांचवी प्राण ऊर्जा इतनी सूक्ष्म है कि आज तक कोई ऐसा यंत्र नहीं बना है जो उसका पता लगा सके। तो दस मिनट तक सभी तरह से डाक्टर या कोई भी व्यक्ति निरीक्षण कर सकता है और उन्हें लगेगा कि योगी मर गया है। और डाक्टर इसका प्रमाण-पत्र भी दे देंगे कि वह मर गया है, और योगी फिर से जीवित हो जाएगा, फिर से उसकी श्वास प्रारंभ हो जाएगी, फिर से उसका हृदय धड़कना प्रारंभ कर देगा। पांचवी प्रक्रिया सर्वाधिक सूक्ष्म है, और यही वह धागा है जो व्यक्ति को एक जैविक एकता में, ऑरगेनिक यूनिटि में बांधकर रखता है। अगर पांचवें को जान लिया, तो परमात्मा को जाना जा सकता है, उससे पहले परमात्मा को नहीं जाना जा सकता। क्योंकि हमारे भीतर पांचवें का वही कार्य है जो कि परमात्मा का उसकी समग्रता में कार्य है। परमात्मा व्यान है। वह संपूर्ण अस्तित्व को एकसाथ जोड़े हुए है -चांद-तारे, सूरज, संपूर्ण ब्रह्मांड को, सब को एक दूसरे के साथ जोड़े हुए है। अगर तुम अपने शरीर को जान लो, तब तुम जानोगे कि शरीर एक लघु जगत है, जो कि संपूर्ण ब्रह्मांड का प्रतिनिधि है। संस्कृत में देह को पिंड कहते हैं, लघु ब्रह्मांड, और जो लघु ब्रह्मांड है, वही है संपूर्ण ब्रह्मांड। और व्यक्ति का शरीर ब्रह्मांड का ही एक लघु रूप है। उसमें वह सभी कुछ है जो इस संपूर्ण अस्तित्व में है, उससे कुछ भी कम नहीं है। अगर व्यक्ति अपनी समग्रता को, अपनी पूर्णता को जान ले, तो वह संपूर्ण अस्तित्व की समग्रता को जान सकता है।
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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