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________________ योगी लोगों का कहना है कि व्यक्ति में प्राण के पांच भिन्न भिन्न रूप, क्रियाएं और ऊर्जा क्षेत्र होते हैं। हम तो यही कहेंगे कि श्वास कहना पर्याप्त है। हम तो केवल दो ही बातें जानते हैं-श्वास को बाहर छोड़ना, श्वास को भीतर लेना-इतना ही। लेकिन योगी तो प्राण के संसार में जीते हैं। और वे इसके सूक्ष्म भेद को समझते हैं, इसलिए उन्होंने इसको पांच भागों में विभक्त किया है। उन पांचों भागों को समझ लेना, वे बहुत महत्वपूर्ण हैं। पहला है प्राण, दूसरा है अपान, तीसरा है समान, चौथा है उदान, पांचवा है व्यान। यह व्यक्ति के भीतर प्राण के पांच विस्तार हैं, और प्रत्येक भीतर अलगअलग काम कर रहा है। प्राण है पहला श्वसन। दूसरा है अपान, वह मलोत्सर्ग में मदद देता है, वह मल आदि शरीर से निकालने में मदद करता है। अंतड़ियों की सफाई अपान से होती है। और अगर तुम जान लो कि कैसे इस पर काम करना है, तो तुम इस ढंग से अंतड़ियों की सफाई कर सकते हो जैसा कि कोई और नहीं कर सकता। योगियों की आते सर्वाधिक साफ होती हैं। और यह बहुत ही महत्वपूर्ण है, क्योंकि एक बार जब आते पूरी तरह साफ हो जाती हैं, जब अंतडिया एकदम साफ हो जाती हैं, तो पूरा शरीर एकदम हलका,भार विहीन हो जाता है, जैसे कि उड़. रहे हो। शरीर का भार समाप्त हो जाता है। साधारणतया तो अंतड़ियों में बहुत सा कचरा और मल भरा रहता है-जीवनभर मल की पर्तों पर पर्ते चढ़ती चली जाती हैं। अंतड़ियों की भीतरी दीवारों पर मल इकट्ठा होता जाता है, वह सूखता जाता है और वह कठोर होता जाता है। जो भीतर जहर बनाता रहता है, उसी से भारी पन आता है। अगर अंतड़ियां साफ हों, तो यह पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के प्रति तुम्हें ज्यादा खोल देता है। योग ने पेट की सफाई पर बहुत जोर दिया है –ताकि भीतर कोई विषैला पदार्थ न बच पाए वरना वे खून में चक्कर काटते रहते हैं, और वे मस्तिष्क में घूमते रहते हैं और वे व्यक्ति के आसपास एक विशेष तरह का ऊर्जा - क्षेत्र निर्मित कर देते हैं। जो कि बोझिल, उदास, और कालिमा लिए होता है। जब अंतड़ियां पूरी तरह से स्वच्छ और साफ हो जाती हैं, तो व्यक्ति के सिर के चारों ओर एक प्रकार का आभा-मंडल निर्मित हो जाता है। और जिन लोगों के पास भी आंखें हैं, वे इसे बड़ी आसानी से देख सकते हैं। और जब अंतड़ियां पूरी तरह से स्वच्छ और साफ हो जाती हैं, तो व्यक्ति को ऐसा लगता है जैसे कि उसको पंख लग गए हों। दूसरा है अपान, मलोत्सर्ग से संबंधित। तीसरा है समान, वह पाचन शक्ति और शरीर को ऊष्मा प्रदान करता है। अगर तीसरे की क्रियाशीलता का ज्ञान हो जाए, और इसके प्रति सजगता आ जाए कि वह कहां प्रतिष्ठित है, तो पाचन –क्रिया एकदम ठीक हो जाती है। साधारणतया भोजन तो हम अधिक कर लेते हैं, लेकिन उसे पचा नहीं पाते। कुछ लोग हैं कि खाए चले जाते हैं, और फिर भी संतुष्ट नहीं होते। भोजन पचे या न पचे, लेकिन कुछ लोग हैं कि लूंस -
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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