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________________ अब जीवन का कोई अर्थ नहीं है, क्योंकि अब किसके लिए जीना? उनके लिए जीवन का अर्थ केवल स्त्री -पुरुष के पीछे भागना ही है। उस स्त्री को बात समझ आई। जब तुम मेरे निकट होते हो, तो किसी भी चीज को समझना बहुत आसान होता है। लेकिन जब तुम दूर चले जाते हो, तो समस्याएं फिर लौट आती हैं, क्योंकि वह समझ आने का कारण मैं ही था। मैं तुम पर आविष्ट हो गया था, मेरे प्रकाश में तुम बहुत सी चीजों को आसानी से देख सकते हो। दूसरे दिन उसने पत्र लिखा, 'भगवान, आपने ठीक कहा। मुझे किसी के पीछे नहीं भागना चाहिए। लेकिन आकस्मिक घटित होने वाले प्रेम संबंधों के बारे में मैं क्या करूं?' तुम फिर से वहीं पहुंच जाते हो। रंगो मत, उठकर खड़े हो जाओ। उपनिषद कहते हैं, उत्तिष्ठ: जागत प्राप्य वरन्नी बौधयात! उठो, जागृत हो जाओ। क्योंकि जाग्रत होना ही उठने का, ऊपर उठने का और ऊंची उड़ान लेने का एकमात्र उपाय है। बंधन का कारण तादात्म्य है। सूत्र कहता है, 'बंधन के कारण का शिथिल पड़ना.....।' अगर तुम स्वयं को अपने शरीर से थोड़ा सा भी निर्मुक्त कर सको, शिथिल कर सको, और मन से अलग हटा सको, तो तुम एक विराट अनुभव को प्राप्त हो जाओगे। और वह अनुभव है : तुम दूसरे के शरीर में प्रवेश कर सकते हो। लेकिन यह विराट अनुभव क्यों है? क्योंकि अगर हम दूसरे के शरीर में प्रवेश कर सकें, तो शरीर से तादात्म्य हमेशा के लिए समाप्त हो जाता है। तब इस बात का बोध हो जाता है, कि इससे पहले भी हम बहुत से शरीरों में प्रवेश कर चुके हैं, इससे पहले भी हम कई शरीरों में रह चुके हैं। उस समय भी हमने प्रेम किया, प्रेम की पीड़ा उठाई, घृणा की, और भी न जाने किन-किन परिस्थितियों में से गुजरे; लेकिन जब शरीर के बाहर आकर हम यह सब देखते हैं, तो फिर कोई सा भी शरीर हो, हम शरीर से ऊपर उठकर पूरा खेल देख सकते हैं। अगर तुम्हारा शरीर के साथ अत्यधिक तादात्म्य न हो, और शरीर के साथ किसी तरह का बंधन न हो, तो इसके लिए प्रयास कर सकते हो। इसी भांति मृत शरीर में प्रवेश किया जा सकता है। बुदध अपने शिष्यों को मरघट पर भेजा करते थे। सूफी लोगों ने इस विधि पर बहुत काम किया है, वे मरघट में रहते थे। लोग लाशों को लेकर आते, और जब किसी शरीर को जलाया जाता, तो वे उस शरीर में प्रवेश करने का प्रयास करते। अगर तुम
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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