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________________ लेकिन नीत्शे पूरी तरह से गलत सिद्ध हो गया। ऐसा मालूम होता है कि वह विज्ञान की युवावस्था का युग रहा होगा, उन्नीसवीं शताब्दी का समय विज्ञान के परिपक्व होने का समय था। और जैसा कि प्रत्येक युवा आत्म-विश्वास से भरा होता है, बहुत ज्यादा आशावादी होता है, असल में तो मूढ़तापूर्ण ढंग से आशावादी होता है, ठीक यही अवस्था विज्ञान की भी थी। तिब्बत में एक कहावत है कि प्रत्येक युवा व्यक्ति वृद्ध आदमी को मूढ मानता है, और प्रत्येक वृद्ध आदमी जानता है कि सारे युवा मूढ़ हैं। युवा व्यक्ति तो केवल मानते हैं, लेकिन वृद्ध लोग तो जानते हैं। उस समय विज्ञान युवावस्था में था, और विज्ञान को अपने ऊपर बहुत अधिक आत्मविश्वास था। उसने यह भी घोषित कर दिया कि परमात्मा मर गया है और धर्म की अब कोई प्रासंगिकता नहीं है वह अप्रासंगिक हो गया है। उन्होंने घोषणा की कि धर्म मनुष्य जाति के बचपन का हिस्सा था। फ्रायड ने एक पुस्तक धर्म के बारे में लिखी, 'दि फ्यूचर आफ एन इन्यूजन कि यह मात्र एक भांति है इल्यूजन है और सच में कहीं कोई भविष्य नहीं है, कहीं कोई खूचर नहीं है। — लेकिन फिर भी परमात्मा का अस्तित्व बना रहा, और इन सौ वर्षों में एक चमत्कार घटित हुआ। अगर नीत्शे वापस लौटकर आए, तो वह भरोसा नहीं कर पाएगा कि यह क्या हो गया। विज्ञान जितना पदार्थ में गहरा उतरता गया, उतना ही उसे समझ में आने लगा कि पदार्थ की कोई सत्ता नहीं है । परमात्मा का अस्तित्व बना रहा, पदार्थ की मृत्यु हो गई। वैज्ञानिक शब्दावली से पदार्थ तो लगभग बिदा ही हो गया। सामान्य भाषा में उसका अस्तित्व बना हुआ है और अगर ऐसा है भी तो पुरानी आदत के कारण, वरना तो अब पदार्थ है ही नहीं। विज्ञान ने जितनी अधिक खोज की, जितना वे गहराई में गए, उतना ही वे जानते गए कि ऊर्जा है पदार्थ नहीं। पदार्थ एक भ्रांति थी। ऊर्जा इतनी तीव्रता से इतनी अदभुत गति से बढ़ती है कि वह ठोस होने का भ्रम देती है। वह ठोसपन मात्र एक भांति है। परमात्मा भ्रांति नहीं है। जगत का ठोस दिखाई पड़ना भ्रांति है। इन दीवारों का ठोसपन अवास्तविक है, वे ठोस दिखाई पड़ती हैं, क्योंकि ऊर्जा – कण, इलेक्ट्रास इतनी तीव्र गति से घूम रहे हैं कि उनकी गति देखी नहीं जा सकती। जब बिजली का पंखा तेजी से चल रहा होता है, तुमने उस पर कभी ध्यान दिया है? जब पंखा तेज रफ्तार से चल रहा होता है, तब पंखे की पंखुड़ियां दिखाई नहीं पड़ती हैं। और अगर पंखा सच में तीव्र गति से चल रहा हो, जैसे कि इलेक्ट्रांस चलते हैं, तो उस पर बैठा जा सकता है, और उस पर से गिरने की भी संभावना नहीं होती और न ही कोई गति का अनुभव होता है। अगर पंखे को गोली मारी जाए तो वह उसके बीच में से नहीं निकल सकती, क्योंकि गोली की गति उतनी नहीं होगी जितनी कि पंखे की गति होती है। ऐसा ही हो रहा है। पदार्थ मिट गया है, अब उसकी कोई तर्क संगति नहीं रही है।
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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