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________________ हमारा प्रशिक्षण प्रारंभ से इसी तरह से हुआ है। हम करीब-करीब रोबोट की तरह ही काम करते हैं, ऐसा अपने आप ही होता है, यह प्रक्रिया संचालित है। शिक्षा की दुनिया में जो नयी क्रांति घटित होने जा रही है उसकी कुछ प्रस्तावनाएं हैं, कुछ प्रपोजल्स हैं। उनमें से एक प्रयोजन है कि छोटे बच्चों को पहले भाषा नहीं सिखायी जानी चाहिए। पहले वे अपनी दृष्टि को अपने अनुभव को परिपक्व करें। उदाहरण के लिए, हाथी के लिए तुम बच्चे से कहो , कि 'हाथी सबसे बड़ा जानवर है।' तुम सोचते हो कि तुम कोई व्यर्थ की बात नहीं कह रहे हो, तुम सोचते हो यह बात एकदम उचित है और बच्चे को इस तथ्य के बारे में बता देना चाहिए। लेकिन हाथी के बारे में किन्हीं भी तथ्यों को बता देने की जरूरत नहीं होती। बच्चे को हाथी स्वयं देखना चाहिए, उसे अनुभव होना चाहिए कि हाथी कितना बड़ा जानवर है क्योंकि उसे तो अनुभव से ही जाना जा सकता है। जिस समय तुम कहते हो, 'हाथी सबसे बड़ा जानवर है, तुम कुछ ऐसी बात कह रहे हो, जो हाथी का अंश नहीं है। तुम क्यों कहते हो कि हाथी सबसे बड़ा जानवर है? इससे तो तुलना उत्पन्न हो गयी, जो कि तथ्य का हिस्सा नहीं है। हाथी बस हाथी है, न तो वह बड़ा है और न छोटा है। निश्चित ही अगर हाथी को घोड़े के साथ खड़ा कर दो, तो वह बड़ा है, या हाथी चींटी के पास खड़ा हो तो वह और भी बड़ा हो जाता है। लेकिन जब तुम यह कहते हो कि हाथी सबसे बड़ा जानवर है, तो तुम चींटी को बीच में ले आते हो। तुम कुछ ऐसी बात बीच में ले आए जो वास्तविकता का, सच्चाई का तथ्य का हिस्सा नहीं है। तुम वास्तविकता को, सच्चाई को, तथ्य को झुठलाने की कोशिश कर रहे हो, अब उसके बीच में तुलना आ गई। बच्चे को स्वयं देखने दो, उससे कुछ भी कहो मत। उसे अनुभव करने दो। जब बच्चे को किसी बगीचे ले जाओ, तो बच्चे से मत कहना कि वृक्ष हरे हैं। बच्चे को ही अनुभव करने देना, बच्चे को उसे आत्मसात करने देना। बात सीधी-साफ है, 'घास हरी है - उसे कहना मत कहकर उसकी सुंदरता को नष्ट मत करना । यह मेरा अपना निरीक्षण है कि बहुत बार जब घास हरी नहीं होती है तब भी वह हरी ही दिखाई देती है - और हरे रंग में भी हजारों तरह के रंग होते हैं। बच्चे से कभी मत कहना कि वृक्ष हरे होते हैं, क्योंकि तब बच्चे को केवल वृक्ष हरा ही दिखायी देगा - कोई भी वृक्ष होगा और वह उसे हरा ही देखेगा। हरा रंग कोई एक ही तरह का नहीं होता; हरे रंग के हजारों शेड होते हैं। , बच्चे को स्वयं अनुभव करने दो, बच्चे को वृक्ष के अनूठेपन को पत्ते पत्ते को आत्मसात करने दो। बच्चे को समाने दो वृक्ष को अपने में। बच्चे को एक ऐसा स्पंज बनने दो, जो अस्तित्व की वास्तविकता को सच्चाई को तथ्यात्मकता को सोख ले, उसे अपने में समा ले और जब जड़ें ठीक से बच्चे की पृथ्वी में जम जाएं, जब वह परिपक्व हो जाए, तब उसे शब्दज्ञान कराना उचित है, तब वे शब्द उसे विचलित न कर सकेंगे। तब वे शब्द उसकी दृष्टि को उसकी सुस्पष्टता को नष्ट नहीं कर
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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