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________________ तुम्हारा स्वयं का ही स्वभाव तुम से कहता रहता है कि इस दृष्टि को, इस दर्शन को पाने की तुम्हारी भी संभावना है। फिर ऊपर-ऊपर से तो तुम इनकार करते चले जाते हो, और गहरे में एक अचेतन धारा तुम से यह कहे चली जाती है कि तुम ठीक नहीं हो। शायद इस दृष्टि का ही होना स्वाभाविक है, और तुम अभी जैसे हो अस्वाभाविक हो। संभव है तुम्हारे जैसे दृष्टि-विहीन लोगों की संख्या अधिक हो, लेकिन इसका सत्य से कोई लेना-देना नहीं है। बुद्ध, जीसस, कृष्ण, जरथुस्त्र इन लोगों का स्मरण उसी भांति रखना होता है, जैसे कि अंधों की वादी में आंख वाले व्यक्तियों का स्मरण किया जाता है। मैं यहां पर तुम्हारे बीच हूं। मैं तुम्हारी कठिनाई समझता हूं, क्योंकि जो मैं देख सकता हूं, तुम नहीं देख सकते हो, जिसे मैं अनुभव कर सकता हूं, उसे तुम अनुभव नहीं कर सकते हो, जिसका स्पर्श मैं कर सकता हूं, तुम उसका स्पर्श नहीं कर सकते हो। मैं भली-भांति जानता हूं कि अगर किसी तरह तुम मेरे प्रति आश्वस्त हो भी जाओ, तो भी गहरे में तुम्हारे कहीं कोई संदेह बना ही रहता है। संदेहकि कौन जाने? यह आदमी कल्पना ही कर रहा हो -कौन जाने? यह आदमी धोखा ही दे रहा हो - कौन जाने? क्योंकि जब तक यह तुम्हारा ही अनुभव न बन जाए, तुम कैसे भरोसा कर सकते हो? मैं जानता हूं तुम मुझे किसी न किसी कोटि में रखना चाहोगे। वह कम से. कम कोई नाम तो दे देगी, कोई लेबल तो लगा देगी, और फिर तुम चैन अनुभव करोगे। तब तुम अगर मुझे किसी कोटि में रख सके तो यह जानोगे, कि ये योगी हैं। फिर कम से कम तुम्हें यह तो लगेगा कि तुम जानते हो 1 कोई नाम देकर लोग समझने लगते हैं कि वे जानते हैं। यह एक तरह की मानसिक रुग्णता है। एक बच्चा तुम से पूछता है, 'यह कौन सा फूल है?' वह फूल को लेकर बेचैन है, क्योंकि वह उस फूल से अपरिचित है -वह फूल उसे उसके अज्ञान के प्रति सचेत करता है। तुम उसे बता देते हो, 'यह गुलाब है।' वह खुश हो जाता है। वह उस नाम को दोहराता रहता है : यह गुलाब है, यह गुलाब है। वह बहुत ही प्रसन्न और आनंदित होकर दूसरे बच्चों के पास जाएगा? और उन्हें बताएगा कि देखो, 'यह गुलाब है। उसने क्या सीख लिया है? एक नाम! लेकिन अब वह निश्चित है कि अब वह अज्ञानी न रहा। अब कम से कम वह अपने अज्ञान को अनुभव तो नहीं कर सकता-अब वह जानकार हो गया है। अब वह फूल उसके लिए अपरिचित नहीं रहा, जानकारी की दुनिया में अब गुलाब उसके लिए किसी अनजान की भांति नहीं रहा, अब गुलाब उसकी जानकारी का हिस्सा बन गया। उसे नाम दे देने से, उसे 'गुलाब' कह देने से, तुमने क्या कर लिया? जब कभी तुम किसी अजनबी से मिलते हो, तो तुरंत पूछते हो, ' आपका नाम क्या है?' क्यों? तुम बिना किसी नाम के क्यों नहीं रह सकते? जबकि इस दुनिया में हर कोई बिना नाम के आता है। कोई अपने साथ नाम लेकर नहीं आता हर कोई बिना किसी नाम के जन्म लेता है। जब घर में कोई बच्चा आने
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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