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________________ मित्र ने जोर देकर उससे पूछा, 'ठीक है, तो तुम ने सच में किया क्या?' अधिकारी ने उत्तर दिया, ' और क्या करता? मैंने एक अमरीकी स्कूल टीचर को बहला फुसला कर उसे भ्रष्ट किया।' अब अमरीका से इटली, अमरीकी स्कूल टीचर को बहलाने -फुसलाने के लिए जाना, लेकिन यही तो इटली के लोग कर रहे हैं, और जब रोम में रहना हो तो सब बातें रोम के लोगों की तरह करनी चाहिए। जब मैं कहता हूं, 'बुरी संगत,' तो मेरा मतलब यही है कि मन अनुकरण करता है। मन अचेतन रूप से अनुकरण करता चला जाता है। और तब तुम चालाकियां सीखना शुरू कर दोगे। और एक बार जब तुम चालाकी सीख लोगे तो फिर उन्हें छोड़ना कठिन होगा -और अगर उन चालबाजियों के साथ तुम्हारे अपने स्वार्थ जुड़े हों तो फिर उन्हें छोड़ना और भी कठिन हो जाता है। अगर लोग तुम्हारे पास आकर तुम्हारी प्रशंसा करें, अगर लोग तुम्हारी गंभीरता का आदर-सम्मान करने लगें, और वे समझें कि तुम बहुत नियंत्रित और अनुशासित जीवन जीते हो, और वे आकर तुम्हारे पांव छूने लगें; तो फिर तुम्हें गंभीरता की आदत को छोड़ पाना बहुत कठिन होगा, क्योंकि फिर तुम अपनी गंभीरता में भी रस लेने लगोगे। अब तुम्हारे रोग में तुम्हारा स्वार्थ भी जुड़ गया। इसे छोड़ दो, इसे गिरा दो। तुम्हें स्वयं के भीतर का जीवन जीना है, न कि बाहर का। इसकी फिकर छोड़ो कि लोग क्या कहते हैं –वे लोग झूठी प्रशंसा करते हैं। बस, यह देखो कि तुम क्या हो? अगर तुम अपने होने में आनंदित हो, प्रसन्न हो, अगर तुम्हारी आत्मा नृत्य मग्न है –तो पर्याप्त है! तब अगर पूरी दुनिया भी तुम्हारी निंदा करे, तो उसे स्वीकार कर लेना। लेकिन अपने आंतरिक आनंद के साथ कभी कोई समझौता मत करना, क्योंकि अंत में वही आनंद तो निर्णायक होगा कि तुम कौन हो। लोग चाहे कुछ भी कहें, वह अप्रासंगिक है, उसका कोई बहुत मूल्य नहीं है। तुम कौन हो यही प्रासंगिक और मूल्यवान है। हमेशा अपने भीतर झांककर देखना कि तुम स्वय के लिए क्या कर रहे हो। और फिर अगर तुम प्रसन्न हो, आनंदित हो तब कोई प्रश्न ही नहीं उठता है। फिर अगर तुम्हें लगे कि तुम अपनी गंभीरता के साथ आनंदित हो, तब कोई समस्या नहीं, तब तुम इस ढंग से आनंदित रह सकते हो, तब वह तुम्हारा अपना चुनाव है। लेकिन मैंने ऐसा कोई आदमी नहीं देखा जो आनंदित भी हो और गंभीर. भी हो। तब तो वह तो आह्लादित और उत्सवपूर्ण होगा, वह आनंद मनाएगा और अपने आनंद को बांटेगा और वह हंसता-नाचता हआ होगा, आनंदित होगा। हंसना इतनी बड़ी आध्यात्मिक घटना है कि उसके जैसा और कुछ भी नहीं है। क्या तुमने नहीं देखा? जब तुम अपने अंतस की गहराई से हंसते हो तो सारे तनाव खो जाते हैं। क्या तुमने कभी इस पर ध्यान दिया है? जब तुम अपने अंतस की गहराई से हंसते हो तो अचानक सामने खुला आकाश प्रकट
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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