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________________ एक गांव में एक युवक रहता था। गांव वालों ने उसकी नाक काट दी थी, क्योंकि उसने कोई गलत काम किया था। लोग उसकी क का मजाक उड़ाते रहते थे। तो जैसा कि स्वाभाविक है, वह अपने को बहुत अधिक अपमानित अनुभव कर्ता था। इस अपमान से बचने के लिए उसने खूब सोच -विचार किया और जल्दी ही उसे एक ऐसा उपाय मिल भी गया जिससे कि लोग उसका आदर और सम्मान करें। वह युवक उस गांव को छोड़कर दूसरे गांव में चला गया, और वहां जाकर उसने साधु का वेश धारण कर लिया और एक वृक्ष के नीचे जाकर ध्यानस्थ होकर बैठ गया। धीरे - धीरे उस गांव के स्त्री और पुरुष उसके आसपास जमा होने लगे। अंततः जब उसने अपनी बंद आंखें खोली तो लोगों ने उससे पूछा कि वह कौन है, और वह उनके लिए क्या कर सकता है। 'मैं तुम्हारे लिए बहुत कुछ कर सकता हूं। अगर तुम अपनी नाक कटवाने के लिए तैयार हो जाओ तो मैं तुम्हें परमात्मा के दर्शन करा सकता हं - मैंने भी परमात्मा के दर्शन ऐसे ही किए हैं। जब से मैंने अपनी नाक कटवा ली है, मैं परमात्मा के दर्शन सभी जगह प्रत्यक्ष रूप से कर सकता है। अब मेरे लिए सभी जगह परमात्मा है।' उसके आसपास जो भीड़ इकट्ठी हो गई थी, उसमें से तीन आदमी अपनी नाक कटवाने के लिए तैयार हो गए। तुम कहीं भी अपने से ज्यादा मूढ़ लोगों को हमेशा खोज सकते हो- और वे लोग तुम्हारे अनुयायी बनने के लिए तैयार ही रहते हैं। वह युवक उन तीनों आदमियों को कुछ दूर वृक्ष के पास ले गया और उन सबकी उसने नाक काट दी, और खून बंद करने के लिए कोई दवा लगा दी, और उनके कान में फुसफुसाया, 'देखो, अब यह कहने का कोई अर्थ नहीं है कि तुम ने परमात्मा के दर्शन नहीं किए हैं। अगर अब तुम ऐसा कहोगे तो वे तुम पर हंसेंगे और तुम्हारा मजाक उड़ाके। और तुम गांव भर के लिए हंसी के पात्र बन जाओगे। इसलिए सुनो, अब तुम जाकर पूरे गांव में खबर कर दो कि जैसे ही तुम्हारी नाक कटी, तुम्हें परमात्मा के दर्शन होने लगे। वे अपनी इस बेवकूफी भरी गलती पर इस कदर शर्मिंदा थे कि उन्होंने उसकी बात मान ली और गांव में जाकर बड़े ही उत्साह से बोले, 'निस्संदेह, हम परमात्मा को देख सकते हैं -परमात्मा सब जगह मौजूद है।' और तब उस गांव के रहने वाले हर व्यक्ति ने अपनी नाक कटवा ली और परमात्मा के अनुभव को उपलब्ध हो गए।
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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