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________________ नहीं है, इसे कुछ नहीं हो सकता। जब तुम किसी स्त्री से कहते हो कि 'मैं तुमसे प्रेम करता हूं क्योंकि छ ' तब वह कभी खुश नहीं होती, यह 'क्योंकि' बुद्धि को बीच में ले आता है। तुम बस ऐसे ही कह देते हो, तुम अपने कंधे उचका देते हो और तुम कहते हो कि 'मुझे भी नहीं मालूम, ऐसा क्यों है, लेकिन मैं तुमसे प्रेम करता हूं, 'तो चंद्र-केंद्र क्रियाशील होने लगता है -और स्त्री प्रसन्न हो जाती है। जरा किसी ऐसी स्त्री को ध्यान से देखना जब कोई उसे प्रेम नहीं करता हो, और जब उसे कोई कहता हो, 'मुझे तुमसे प्रेम है, तब उसे देखना। उसके सौंदर्य में, उसकी चाल में तुरंत फर्क आ जाएगा। एक अदभुत परिवर्तन-उसका पूरा चेहरा किसी नए आलोक से प्रकाशित हो जाएगा, उसके चेहरे पर एक चमक आ जाएगा। क्या हो गया? तब –चंद्र-केंद्र पर जो ऊर्जा रुकी हुई थी, वह निर्मुक्त होने लगती तुम ने एक महान डच चित्रकार, विनसेंट वानगाग का नाम अवश्य ही सुना होगा। उसका व्यक्तित्व कोई सुंदर न था, वह बहुत ही कुरूप था और कभी भी किसी स्त्री ने वानगाग से नहीं कहा था कि 'मुझे तुमसे प्रेम है।' निस्संदेह उसका वह केंद्र अविकसित ही रह गया-उसका चंद्र-केंद्र कभी क्रियाशील ही नहीं हुआ। वह इतना कुरूप था कि उसे देखकर वितृष्णा होती थी। लोग उसे देखते ही उससे बचकर निकल जाते थे। वह एक दुकान में काम करता था और उस दुकान का मालिक उसे रोज दिन-रात देखता था। वह इतना ढीला-ढाला और सुस्त नजर आता था जैसे कि उसके तन - मन पर धूल ही धूल इकट्ठी हो गयी हो। और उसे किसी भी बात में कोई रुचि नहीं थी। ग्राहक आते तो वह उन्हें पेंटिंग्स दिखाता जरूर था, लेकिन दिखाने में उसे कोई रुचि नहीं होती थी। वह हमेशा थका- थका सा रहता था। उसे किसी चीज में कोई उत्सुकता नहीं थी, वह हमेशा तटस्थ रहता था। जब वह चलता भी था, तो उसे देखकर ऐसा लगता था जैसे कि कोई जीवित लाश चली जा रही है - चलना ही पड़ेगा इसलिए वह चलता था, लेकिन उसकी चाल -ढाल में कोई उत्साह, कोई उमंग, कोई जीवन नहीं था। एक दिन अचानक उस दुकान के मालिक को अपनी आंखों पर भरोसा ही नहीं आया। जब वानगाग दुकान पर आया तो उसे देखकर ऐसा लगता था वह कई महीनों या शायद कई वर्षों के बाद नहाया हो। वह नहा – धोकर, बालों को ठीक से संवार कर आया था। उस दिन वानगाग ने अच्छे कपड़े पहने हए थे, इत्र भी लगा रखा था और उसके चलने में एक तरह की उमंग थी और साथ में वह कुछ गुनगुना भी रहा था। दुकान के मालिक को तो कुछ समझ ही नहीं आया। सब कुछ बदला-बदला था। दुकान का मालिक चकित था कि आखिर वानगाग को हआ क्या है। मालिक ने उसे बुलाकर पूछा, 'वानगाग, आज बात क्या है? वानगाग बोला, 'आज बात कुछ बन गयी है। एक स्त्री ने कहा है कि वह मुझसे प्रेम करती है। हालांकि वह स्त्री एक वेश्या है, लेकिन फिर भी
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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