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________________ कृपा करके बुद्धि अंतर्बोध और प्रतिभा के प्रासंगिक महत्व को उनके समुचित परिप्रेक्ष्य में समझाएं। और आपसे प्रार्थना है कि इसे विशेष रूप से समझाएं कि जीवन क्यों और कैसे प्रतिभा की ओर उन्मुख हो सकता है? और इस प्रकार की प्रतिभा जीवन के लिए और जीवन के उच्चतम व श्रेष्ठतम विकास के लिए कैसे उपयुक्त हो सकती है? बुद्धि तुम्हारे अस्तित्व की सबसे निम्नतम क्रियाशीलता है, क्योंकि वह सर्वाधिक निम्नतम क्रियाशीलता है, इसलिए उसमें सर्वाधिक सामर्थ्य है। चूंकि वह सबसे नीचे है, इसलिए वह सबसे अधिक विकसित है। क्योंकि निम्न को प्रशिक्षित किया जा सकता है, अनुशासित किया जा सकता है। क्योंकि बुद्धि सबसे नीचे का तल है, तो सभी विश्वविद्यालय, कालेज, स्कूल, बुद्धि प्रशिक्षण के लिए ही हैं। और प्रत्येक व्यक्ति में थोड़ी-बहुत बुद्धि तो होती ही है। बाहर के संसार के लिए बुद्धि का अदभुत रूप से उपयोग है। संसार में बिना बुद्धि के किसी उपयोग का हो पाना कठिन है। इसीलिए लाओत्सु अपने शिष्यों से कहता है, 'अनुपयोगी हो जाओ।' जब तक तुम अनुपयोगी होने को तैयार नहीं हो जाते, तुम बुद्धि को पीछे छोड़ने को राजी न होओगे, क्योंकि बुद्धि तुम्हें उपयोगिता प्रदान करती ही रहती है। अगर तुम डाक्टर बन जाते हो -तो तुम समाज के लिए उपयोगी हो जाते हो। अगर तुम इंजीनियर बन जाते हो, प्रोफेसर बन जाते हो -कुछ न कुछ बन जाते हो, तो तम समाज के लिए उपयोगी हो जाते हो। और यह केवल बदधि के दवारा ही संभव हो पाता है कि तुम 'कुछ' बन जाते हो -और तब फिर समाज तम्हारा उपयोग साधन की भांति कर सकता है। जितने ज्यादा उपयोगी तुम समाज के लिए होते हो, उतना ही अधिक मूल्य तुम्हारा होता है; उतने ही तुम समाज में प्रतिष्ठित होते हो। इसीलिए ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र की श्रेणियां हैं। इन चारों श्रेणियों में सबसे ऊपर है पंडितविद्वान, जो कि विशुद्ध बुद्धि से जीता है -ब्राह्मण। उससे कुछ नीचे है योद्धा, क्षत्रिय, क्योंकि उसे देश की रक्षा करनी होती है। उससे नीचे है व्यापारी, वैश्य, क्योंकि वह संपूर्ण समाज की रक्त -संचार व्यवस्था है -समाज की पूरी अर्थ -व्यवस्था इन्हीं के ऊपर निर्भर है। और सबसे नीचे है शूद्र, अछुत, सर्वहारा, श्रमजीवी वर्ग, क्योंकि उसका काम शारीरिक श्रम का है। उसमें सबसे कम बुद्धि की आवश्यकता होती है, उसमें कुछ ज्यादा बुद्धि की आवश्यकता नहीं होती है। शूद्र को अधिक बुद्धि के विकास की आवश्यकता नहीं होती है, और ब्राह्मण को बुद्धि के अधिक से अधिक विकास की आवश्यकता होती है। लेकिन यह पूरा विभाजन बुद्धि के कारण है। बुद्धि की अपनी उपयोगिता है, लेकिन व्यक्ति बुद्धि से कहीं अधिक बड़ा है, बुद्धि से अधिक विराट है।' व्यक्ति बुदधि के माध्यम से डाक्टर, इंजीनियर, प्रोफेसर, व्यापारी, योद्धा तो बन जाएगा, लेकिन
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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