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________________ योग में मूलाधार के प्रतीक के रूप में, काम-केंद्र को चार पंखुड़ियों वाला लाल कमल माना जाता है। चार पंखुड़ियां चारों दिशाओं का प्रतिनिधित्व करती हैं। लाल रंग, ऊष्मा का प्रतिनिधित्व करता है, क्योंकि वह सूर्य का केंद्र है। और सहस्रार प्रतिनिधित्व करता है सभी रंगों का, हजार पंखुड़ियों के कमल के रूप में। हजार पंखुड़ियों वाला कमल-सहस्रार पदम-सभी रंगों से परिपूर्ण एक हजार पंखुड़ियों वाला कमल, क्योंकि सहस्रार में संपूर्ण अस्तित्व समाया हुआ है। सूर्य -केंद्र केवल लाल होता है। सहस्रार इंद्रधनुषी होता है -उसमें सभी रंग समाए होते हैं, उसमें समग्रता समाहित होती है। सामान्यत: सहस्रार, एक हजार पंखुड़ियो वाला कमल सिर में नीचे की ओर लटका हुआ होता है। लेकिन जब इससे ऊर्जा गतिमान होती है, तो ऊर्जा से यह ऊपर की ओर हो जाता है। पहले तो यह ऐसे ही है जैसे कोई कमल ऊर्जा रहित नीचे की ओर लटका हुआ हों-उसका भार ही उसे नीचे की ओर लटका देता है –फिर जब वह ऊर्जा से भर जाता है, तो उसमें जीवन का संचार हो जाता है। वह ऊपर उठने लगता है, वह बियांड के, पार के, जगत के प्रति खुल जाता है। जब कमल खिल जाता है, तो योग-शास्त्र कहते हैं कि 'तब वह दस लाख सूर्य और दस लाख चंद्र के रूप में देदीप्यमान हो उठता है। जब भीतर एक चंद्र और एक सूर्य परस्पर मिल जाते हैं, तो फिर वह बाहर के दस लाख सूर्य और दस लाख चंद्र के बराबर होते हैं। तब व्यक्ति उस परम आनंद की कुंजी को खोज लेता है, जहां दस लाख चंद्र दस लाख सूर्यों से मिलते हैं -दस लाख स्त्रियों का दस लाख पुरुषों से मिलन होता है। तो उस परम आनंद की तुम थोड़ी-बहुत कल्पना कर सकते हो, थोड़ा - बहुत उस बारे में सोच सकते हो। शिव जब अपनी पत्नी देवी के साथ प्रेम में पाए गए तो उसी आनंद अवस्था में रहे होंगे। वे सहस्रार में प्रतिष्ठित रहे होंगे। उनका प्रेम केवल कामवासना वाला प्रेम नहीं हो सकता-वह प्रेम मूलाधार से नहीं हो सकता। वह उनके अस्तित्व के शिखर बिंद से, ओमेगा पाइंट से आया होगा। इसीलिए कौन वहां खड़ा है, कौन उन्हें देख रहा है इसके प्रति वे पूरी तरह से बेखबर थे। वे समय और स्थान में स्थित नहीं थे। वे समय और स्थान के पार थे। योग का, तंत्र का, सारे आध्यात्मिक प्रयासों का यही तो एकमात्र लक्ष्य है। पुरुष और स्त्री ऊर्जा का मिलन, शिव और शक्ति का परम मिलन, जीवन और मृत्यु के आत्यंतिक जोड़ की संभावना को निर्मित कर देता है। इस दृष्टि से हिंदुओं के परमात्मा बहुत अनूठे और अदभुत रूप से मानवीय हैं। थोड़ा ईसाइयों के परमात्मा के बारे में विचार करो। कोई पत्नी नहीं, कोई स्त्री नहीं साथ में! यह बात जड़, एकाकी, रिक्त, पुरुष प्रधान, सूर्यगत और कठोर मालूम होती है। अगर यहूदियों और ईसाइयों के परमात्मा की अवधारणा भयानक और डरावने परमात्मा की है तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं।
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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