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________________ ऊर्जा को अगर ऊपर की ओर गतिमान करना है, तो इसकी विधि संयम है। पहली बात, अगर तुम पुरुष हो तो तुम्हें तुम्हारे सूर्य के प्रति तुम्हारे सूर्य –ऊर्जा के केंद्र के प्रति, तुम्हारे काम केंद्र के प्रति, पूरी तरह होशपूर्ण होना होगा। तुम्हें मूलाधार में रहना होगा, अपने संपूर्ण चैतन्य को, अपनी पूरी ऊर्जा को मूलाधार पर बरसा देना होगा। जब मूलाधार पर पूरा होश आ जाता है तो तुम पाओगे कि ऊर्जा हारा केंद्र की ओर उठ रही है, चंद्र की ओर बढ़ रही है। और जब ऊर्जा चंद्र-केंद्र की ओर गतिमान होगी, तो तुम बहुत संतृप्ति, बहुत आनंदित अनुभव करोगे। सारी कामवासना के आनंद इसकी तुलना में कुछ भी नहीं हैं -कुछ भी नहीं हैं। जब सूर्य –ऊर्जा अपनी ही चंद्र-ऊर्जा में उतरती है, तो उस आनंद की सघनता उससे हजारों गुना अधिक होती है। तब सच में पुरुष और स्त्री का मिलन घटित होता है। बाहर किसी भी स्त्री से कितनी भी निकटता क्यों न हो, कितने भी करीब क्यों न हो, तुम अपने को पृथक और अलग ही अनुभव करते हो। बाहर का मिलन तो बस सतही और औपचारिक ही होता है -दो सतह, दो परिधियां ही आपस में मिलती हैं। दो सतह एक -दूसरे को स्पर्श करती हैं, बस इतना ही होता है। लेकिन जब सूर्य –ऊर्जा चंद्र-ऊर्जा की ओर गतिमान होती है, तब दो ऊर्जा केंद्रों की ऊर्जा आपस में मिल जाती है -और जिस व्यक्ति के सूर्य और चंद्र एक हो जाते हैं, वह परम रूप से आनंदित और संतृप्त हो जाता है - और फिर वह हमेशा आनंदित और संतृप्त बना रहता है, क्योंकि इसको खोने का कोई उपाय ही नहीं है। यह आनंद और मिलन सनातन है। अगर तुम स्त्री हो तो तुम्हें अपनी संपूर्ण चेतना को हारा तक ले आना होगा, और तब तुम्हारी ऊर्जा सूर्य -केंद्र की ओर बढ़ने लगेगी। प्रत्येक व्यक्ति में एक केंद्र निष्किय होता है और एक केंद्र सक्रिय होता है। सक्रिय केंद्र को निष्किय केंद्र के साथ जोड़ दो, तो निष्क्रिय केंद्र सक्रिय हो जाता है। और जब दोनों ऊर्जाओं का मिलन होता है -जब सूर्य –ऊर्जा और चंद्र-ऊर्जा एक हो रहे होते हैं, तो ऊर्जा ऊपर की ओर उठती है। तब व्यक्ति ऊर्ध्वगमन की ओर बढ़ने लगता है। मैंने सुना है: एक पागल आदमी अपने दूर के रिश्तेदार के यहा मेहमान था। उसने उसे अपने मकान के तलघरे में ठहरा दिया। कोई आधी रात ऊपर से अपने मेहमान के हंसने की आवाज सुनकर मेजबान की नींद खुल गयी। उसने पूछा, 'तुम वहां क्या कर रहे हो? तुम्हें तो तलघरे में सोना था।' मेहमान ने जवाब दिया, 'मैं वहीं पर था। मैं बिस्तर से लुढ़क गया हूं।'
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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