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________________ यह प्रश्न जरूर किसी ऐसे आदमी ने पूछा है जो मुझे समझ नहीं सका है। यह किसी नए आदमी का प्रश्न है। लेकिन अभी बहुत से लोग नए ही हैं, तो इसे समझ लेना। यह तुम्हारे लिए भी सहयोगी होगा। 'स्व-निर्भर होने के लिए आपकी क्या विधि है?' तुम्हें स्व –निर्भर बनाने में मेरा रस जरा भी नहीं है, क्योंकि वैसा असंभव है। तुम इस संपूर्ण अस्तित्व के साथ इतने जुड़े हुए हो कि तुम स्व-निर्भर हो कैसे सकते हो? यह भी अहंकार की ही कोशिश है कि स्व –निर्भर होना है। सभी से मुक्त होना है यह भी अहंकार की ही यात्रा है, अहंकार की ही चरम परिणति है। नहीं, तुम अपने आप से स्व –निर्भर नहीं बन सकते हो। तुम अपने में समग्र अस्तित्व को तो समाहित कर सकते हो, लेकिन स्व –निर्भर नहीं हो सकते। तुम समग्र में समाहित हो सकते हो या समग्र तुम में समाहित हो सकता है, लेकिन तुम स्व –निर्भर नहीं हो सकते हो। तुम स्वयं को इस ब्रह्मांड से कैसे अलग कर सकते हो? इस विराट ब्रह्मांड से अलग होकर तुम पल भर भी जीवित नहीं रह सकते। अगर तुम श्वास न ले सको, तो तुम जीवित नहीं रह सकोगे। और श्वास भीतर रोककर नहीं रखी जा सकती है, श्वास को बाहर भी छोड़ना होता है। ऐसे हम श्वास को लेते रहते हैं, और छोड़ते रहते हैं। तुम्हारे और अस्तित्व के बीच यह कम निरंतर चलता रहता है। जो लोग जानते हैं, वे कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि तुम श्वास लेते हो, इसके विपरीत संपूर्ण अस्तित्व तुम्हारे माध्यम से श्वास लेता है। अपनी श्वास को शांति से देखना प्रारंभ करो। और श्वास को देखते -देखते ऐसी घड़ी आ सकती है जब अचानक तुम्हारा ध्यान एक नए रहस्य की ओर जाएगा। पहले जब तुम अपनी श्वास पर ध्यान देते हो -अपनी कूर्म -नाड़ी पर, जिसे बुद्ध ने अनापानसती योग कहा है –तो जब तुम अपनी श्वास पर ध्यान देते हो, तुम सोचते हो कि तुम श्वास ले रहे हो, तुम श्वास छोड़ रहे हो। धीरे – धीरे तुम देखोगे -तुम्हें देखना ही होगा, क्योंकि यही सत्य है –कि तुम श्वास नहीं ले रहे हो। श्वास को चलने के लिए तुम्हारी कोई जरूरत नहीं होती है। इसीलिए तो नींद में भी श्वास की प्रक्रिया जारी रहती है। अगर तुम बेहोश भी हो जाते हो, मूर्छित भी हो जाते हो, तो भी तुम श्वास लेते रहते हो। तुम श्वास को नहीं ले रहे हो; अन्यथा तो कई बार तुम श्वास लेना ही भूल जाओगे, और तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी। चूंकि श्वास की प्रक्रिया अपने आप चल रही है, इसलिए उसे भूलने का सवाल ही नहीं उठता है।
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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